केडी जाधव : ओलंपिक खेलने को घर गिरवी रखा, पहला इंडिविजुअल ओलंपिक मेडल जीते

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आज 15 जनवरी का दिन देश के हीरो केडी जाधव (KD Jadhav) को याद करने का दिन है। जाधव आजाद भारत के लिए पहला इंडिविजुअल ओलंपिक मेडल जीतने वाले खिलाड़ी थे।

उन्होंने 1952 हेलसिंकी ओलंपिक्स (Helsinki Olympics) में रेसलिंग (wrestling) (बेंटमवेट) में कांस्य पदक (bronze medal) अपने नाम किया।

KD Jadhav रेसलिंग मैच में हिस्सा लेने के दौरान (फाइल फोटो)
KD Jadhav रेसलिंग मैच में हिस्सा लेने के दौरान (फाइल फोटो)

उससे पहले 1948 में लंदन ओलंपिक्स (London Olympics) में वह बढ़िया प्रदर्शन कर चुके थे।

मूल रूप से महाराष्ट्र (Maharashtra) के सतारा (satara) जिले में स्थित गोलेश्वर गांव के रहने वाले केडी को ओलंपिक में हिस्सेदारी के लिए अपना घर तक गिरवी रखना पड़ा।

लेकिन हार न मानने वाले इस खिलाड़ी ने अपने गांव को संसार के नक्शे पर ला दिया। ओलंपिक मेडल जीतने के बाद सारा गांव झूम रहा था।

जब केडी जाधव (KD Jadhav) पदक के साथ लौटे तो गांव के बाहर 151 बैलगाड़ियों ने उनका इस्तकबाल किया।

जश्न इस कदर था कि गोलेश्वर (goleshwar) से महादेव मंदिर के बीच 15 मिनट की दूरी सात घंटे में तय हुई।

दादा साहेब जाधव (dada saheb Jadhav) के पांच पुत्रों में सबसे छोटे खशाबा दादासाहेब जाधव ने महज आठ साल की छोटी उम्र में एक स्थानीय पहलवान को धूल चटा अपने इरादे जाहिर कर दिए, लेकिन सिस्टम से भी उन्हें दो-दो हाथ करने पड़े।

सन् 1955 में पुलिस सब इंस्पेक्टर (police sub inspector) की नौकरी ज्वाइन करने के बाद एसीपी (ACP) पद से रिटायर हुए जाधव को पेंशन (pension) के लिए लड़ना पड़ा।

1984 में एक रोड एक्सीडेंट (road accident) में उनकी मौत हो गई। 2010 में सरकार ने इंदिरा गांधी स्पोर्ट्स कांप्लेक्स (Indira Gandhi sports complex) में एक कोने का नामकरण उनके नाम पर किया।

यह भी अजब है कि वह अकेले ऐसे ओलंपियन (olympian) रहे, जिन्हें कोई पद्म अवार्ड (padam award) नहीं मिला।

आज जब तमाम सुविधाएं होते हुए देश ओलंपिक मेडल के लिए तमाम जतन करता है तो ऐसे में केडी जाधव जैसे ओलंपियन बहुत याद आते हैं।

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