Loot के लिए जब गांवों में घर के बाहर छाता और चिट्ठी छोड़ जाते थे डकैत

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एक समय वो था, जब पश्चिम यूपी में लूट (loot) से पहले निशानी छोड़ी जाती थी। कई गांवों में डकैतों का खौफ था। वे गांवों में घरों के बाहर छाता रखकर जाते थे।

इसके साथ ही एक चिट्ठी छोड़कर जाते थे, जिसमें डकैती की तारीख का उल्लेख रहता था। घरवालों से सावधान रहने को कहा जाता था।

यह करीब 65-70 साल पहले की बात होगी। उस वक्त पुलिस को loot को लेकर सूचना देना भी कोई बहुत काम का नहीं होता था।

एक तो डकैतों का डर और दूसरे पुलिस चौकी गांव से दूर होती थी, और पुलिस के पास बहुत संसाधन नहीं होते थे।

ऐसे में कई बार डकैतों के डर से घरवाले पुलिस तक खबर तक नहीं पहुंचाते थे। डकैत आते और  घर से पैसे, जेवर लेकर चंपत हो जाते।

इससे पहले वह मुखबिर से सूचना पक्की कर यह छाता छोड़ते थै। किस घर में शादी है? किस घर में फसल के बाद अच्छी नकदी पहुंची है? किसने जमीन की खरीद-फरोख्त की है आदि।

चीनी मिल के नजदीक स्थित बड़ौत (baraut) जिले के रमाला (ramala) गांव निवासी करीब 68 वर्षीया शकुंतला देवी (shakuntla devi) 1960 के आसपास की बातें याद करते हुए बताती हैं कि उस वक्त शादी-ब्याह भी एक बेहद संवेदनशील मामला होता था।

Loot डकैती से जुड़ी गांवों की बातें बतातीं शकुंतला देवी।
Loot डकैती से जुड़ी गांवों की बातें बतातीं शकुंतला देवी।

वह लूट-डकैतों से जुड़े अनोखे किस्से भी सुनाती हैं। उनके मुताबिक गांव में जब वे रात में किसी को लूटते और पता चलता कि वह अमुक गांव का दामाद है तो उसे लूटी गई राशि और सामान के साथ शगुन देकर छोड़ देते थे।

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इसके अलावा यदि उन्हें किसी बेहद गरीब के सताए जाने की खबर होती तो उसकी मदद के लिए आगे भी आते थे।

वेस्ट यूपी (west up) के कई गांवों में ऐसी स्थिति थी। डकैतों को लेकर तरह-तरह की कहानियां सुनने को मिलती।

कुछ क्रूरता की कहानियां और कुछ दयानतदारी की। पुराने लोग आज भी गांवों की इन कहानियों को याद करते हैं।

 

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