पीरू सिंह : लहूलुहान होने के बावजूद रेंगते हुए आगे बढ़े, दुश्मन के ठिकाने नष्ट कर दिए

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भारतीय वीरों ने जंग के मैदान में वीरता की वो मिसाल पेश की है, जिस पर आने वाली नस्लों को भी नाज होगा। ऐसे ही एक बहादुर फौजी थे-पीरू सिंह (peeru Singh)।

18 जुलाई, 1948! यह वो दिन था, जब जम्मू-कश्मीर (Jammu -Kashmir)  के तिथवाल में पड़ोसी दुश्मन पाकिस्तान ने एक पहाड़ी पर कब्जा कर लिया।

6 राजपूताना राइफल्स के सीएचएम पीरू सिंह (peeru Singh) को पहाड़ी पर हमला कर कब्जे में लेने का जिम्मा सौंपा गया।

पीरू अपने मिशन में जुट गए। हमले के दौरान उन पर एमएमजी (MMG) से भारी गोलीबारी की गई और हथगोले फेंके गए।

उनकी टुकड़ी के आधे से अधिक सैनिक इस हमले में मारे गए या घायल हो गए। पीरू सिंह ने अपने बचे हुए जवानों को लड़ाई जारी रखने का हौसला दिया और घायल होने के बावजूद दुश्मन के एमएमजी युक्त दो बंकर (bunker) नष्ट कर दिए।

इस दौरान अचानक उन्हें पता चला कि उनकी टुकड़ी में अकेले वे ही जिंदा बचे हैं।  इसी बीच दुश्मनों ने उन पर एक और हथगोला फेंका। वे लहुलुहान होने के बावजूद रेंगते हुए आगे बढ़े।

आखिरी सांस लेने से पहले उन्होंने दुश्मन के ठिकाने को नष्ट कर दिया। अदम्य शौर्य दिखाते हुए सर्वोच्च बलिदान देने वाले कंपनी हवलदार मेजर पीरू सिंह को मरणोपरांत 1952 में परम वीर चक्र (param vir chakra)  दिया गया।

आपको बता दें कि पीरू सिंह (peeru Singh) का जन्म 20 मई, 1918 को राजस्थान के बेरी गांव में लाल सिंह के यहां हुआ था।

लाल सिंह के सात‌ बच्चों में पीरू सिंह सबसे छोटे थे। ऐसे में परिवार के वे बेहद दुलारे थे। उन्हें रोक टोक पसंद नहीं थी।

एक बार सहपाठी से झगड़ा करने पर शिक्षक ने उन्हें डांट दिया। इससे खफा होकर वे फिर उस स्कूल में नहीं गए।

वे अपने माता-पिता को उनकी खेती में मदद करने लगे। वे सेना में जाने का सपना देखते थे। आखिरकार 18 साल की उम्र पूरी करने पर उनका सपना साकार हुआ।

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इसके बाद उन्होंने बहादुरी की जो इबारत लिखी, उसके लिए हर कोई उन्हें सलाम करता है।

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