Swami Vivekananda ने 1890 में देहरादून के इस बावड़ी शिव मंदिर में गुजारे थे तीन सप्ताह

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स्वामी विवेकानंद (swami Vivekananda) की 12 जनवरी को जयंती है। उत्तराखंड से भी उनका विशेष लगाव था। वे 1890 में देहरादून (dehradun) आए थे।

यहां वे बावड़ी शिव मंदिर (baori shiv mandir) में रुके थे। वे तीन सप्ताह तक यहां रहे। वे कोलकाता (Kolkata) में चिकित्सा कारणों से यहां आए थे।

Swami Vivekananda की देहरादून स्थित तपस्थली को जाती राह। (फाइल फोटो)
Swami Vivekananda की देहरादून स्थित तपस्थली को जाती राह। (फाइल फोटो)

बताया जाता है कि इस दौरान बद्रीनारायण क्षेत्र में आपदा भी फैली थी। इस दौरान वह टिहरी (Tehri) से श्रीनगर (Srinagar) होते हुए देहरादून पहुंचे थे।

घोड़े पर उन्होंने मसूरी रूट भी तय किया।  बावड़ी शिव मंदिर, देहरादून में आज भी स्थानीय लोग पहुंचते हैं।

सन 2011 में करीब 20 लाख के खर्च से इस मंदिर की अप्रोच रोड (approched road) बनाई गई थी और उसे सुधारा भी गया था।

लेकिन उसके बाद इसके रखरखाव पर किसी भी जिम्मेदार का ध्यान नहीं गया। इस ऐतिहासिक महत्व के स्थान की ओर पर्यटकों को आकर्षित करने की ओर भी कोई ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया।

बताया जाता है कि स्वामी विवेकानंद (swami Vivekananda) चार बार उत्तराखंड (uttarakhand) आए थे, लेकिन यदि प्रमाण की बात करें तो प्रमाण उनके केवल दो बार आने के हैं।

सन्  1897 में वह अल्मोड़ा (almora) गए थे। वही उन्हें अपनी बहन के निधन की सूचना मिली थी।

देहरादून में वह स्वामी अखंडानंद (swami akhandananda)  के साथ पहुंचे थे। यहां उन्हें उनके गुरु भाई स्वामी तुरियानंद (swami turiyananda) के होने का पता चला था।

जिसके चलते वे देहरादून रुके थे। उन्होंने बावड़ी शिव मंदिर वाले स्थान को अद्भुत शक्ति का केंद्र करार दिया था। इसे बाद में स्वामी विवेकानंद तपस्थली के रूप में जाना जाने लगा।

आपको बता दें कि स्वामी विवेकानंद का असली नाम नरेंद्र नाथ था। वे काली के उपासक स्वामी रामकृष्ण परमहंस (swami ramkrishna paramhans) के शिष्य थे।

शिकागो (shikago) में दिया गया उनका भाषण आज भी याद किया जाता है। उनकी सीख-उठो, जागो और तब तक मत रुको, जब तक लक्ष्य की प्राप्ति न हो जाए, आज भी लोगों को प्रेरणा देता है।

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