मोहम्मद रफी ने जब गाने के लिए ली केवल एक रुपया फीस, रो पड़े थे यह गीत गाते हुए
1 min readमशहूर singer मोहम्मद रफी (Mohammad Rafi) की 24 दिसंबर को 96वीं जयंती है। रफी ने एक दफा गाने के लिए फीस केवल एक रुपया ली थी।
जी हां, यह वाकया जुड़ा है कंपोजर निसार बज्मी से। निसार मोहम्मद रफी साहब से अपनी कंपोजिशन गवाना चाहते थे। लेकिन उनके पास उनको देने के लिए पैसे नहीं थे।
ऐसे में रफी ने उनसे बतौर फीस केवल ₹1 लेेकर उनके लिए गाना गाया। अलबत्ता, इसके बाद निसार पाकिस्तान चले गए।
रफी गाते हुए अपने गीतों में खो जाते थे। बताया जाता है कि ‘नीलकमल’ फिल्म के लिए ‘बाबुल की दुआएं लेती जा…’ गीत की रिकार्डिंग करते वक्त वह खुद रो पड़े थे।
आपको बता दें कि मोहम्मद रफी (Mohammad Rafi) का जन्म सुल्तान सिंह कोटला में 24 दिसंबर, 1924 में हुआ था। अब यह जगह पंजाब (Punjab) के अमृतसर (Amritsar) जिले में पड़ती है।
वह 11 साल के थे, जब उनके पिता लाहौर (Lahore) चले गए। लाहौर में ही 13 साल की उम्र में उन्होंने पहली बार पब्लिक परफार्मेंस दी।
उन्होंने यहां केएल सहगल (KL saigal) का गाना गाया। लोगों को ऐसा लग रहा था कि मानों केएल सहगल ही गा रहे हों।
मोहम्मद रफी को अपना पहला फिल्मफेयर अवार्ड (filmfare award) ‘चौदहवीं का चांद हो या आफताब हो’ गाने के लिए मिला।यह फिल्म आज से 70 साल पहले सन् 1960 में आई थी
आपको बता दें कि इस गीत को संगीतकार रवि (Ravi) ने कंपोज किया था। नीलकमल के जिस गीत ‘बाबुल की दुआएं लेती जा…’ पर मोहम्मद रफी के आंसू छलक पड़े थे, उसके कंपोजर भी रवि ही थे।
मोहम्मद रफी के गले की रेंज जबरदस्त थी। उन्होंने रोमांटिक के साथ ही चुलबुले गीत, ग़ज़ल, भजन सभी बखूबी गाए।
उन्हें अपनी शानदार गायकी के लिए चार बार फिल्म फेयर और एक बार नेशनल अवार्ड मिला। उन्होंने नौशाद, रवि, एसडी बर्मन, शंकर-जयकिशन, ओपी नय्यर, लक्ष्मीकांत-प्यारे लाल, कल्याण जी-आनंद जी आदि तमाम कंपोजर्स के साथ काम किया।
नौशाद के साथ उनके संगीत की शुरुआत नौशाद के पिता की लिखी गई एक चिट्ठी से हुआ था। मुंबई आने पर रफी एक 10 बाय 10 के कमरे में रहे थे।
बेशक बाद में किशोर कुमार रफी के मजबूत प्रतिद्वंदी बनकर उभरे, लेकिन एक वक्त ऐसा भी था जब मोहम्मद रफी ने किशोर कुमार के लिए गाने गाए।
पर्दे पर किशोर कुमार एक्टिंग का मोर्चा संभाले हुए थे, जबकि पीछे से मोहम्मद रफी की आवाज गूंज रही थी।
31 जुलाई, 1980 का दिन था, जब रफी को दिल का दौरा पड़ा और रात को करीब साढ़े 10 बजे वह इस दुनिया से कूच कर गए।
बताया जाता है कि उनकी अंतिम यात्रा में 10 हजार के करीब लोग शामिल हुए थे।