सीरियस मैन:  सपनों को पूरा करने के लिए किसी भी हद तक जाने वाला आदमी

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‘रात काला छाता, जिस पर इतने सारे छेद’ गीत के साथ शुरू होती
निर्माता-निर्देशक सुधीर मिश्र की सीरियस मैन का किरदार एक आम आदमी है। जिसे आप और हम अपने आस पास देखते आए हैं।
यह दलित होने की वजह से पीढ़ियों से भेदभाव का शिकार होते आ रहे और बेटे को सब कुछ देने की कोशिश में जुटे अयान मणि की कहानी है।
स्लो लर्नर बेटे आदि को झूठ का मुलम्मा चढ़ाकर जीनियस साबित करने वाले पिता की कहानी है।
मुफ्त शिक्षा का सपना दिखाकर धर्म परिवर्तन का झांसा देती स्कूल हेड की कहानी है।
सियासत में घुन की तरह लगे अनपढ़ लीडरों की कहानी है। साइंस के नाम पर चल रहे खेल की कहानी है। समाज के कुचले वर्ग को उपर उठाने के बहाने आदि का इस्तेमाल कर राजनीति और व्यवसायिक जोड़तोड़ की कहानी है।
लेकिन फिल्म एक पाॅजिटिव नोट पर खत्म होती है, जो फिल्म के अंत में नेशनल फंडामेंटल रिसर्च इंस्टीट्यूट के स्पेस साइंटिस्ट डाॅ अरविंद आचार्य के किरदार की जुबां से निकलता है। वह आदि से कहते हैं, अपने 30 साल के करियर में मैं फेल हुआ
हूं। फेल होने का मतलब है कि आप सीखते हैं।

इसी गांधी जयंती पर नेट फ्लिक्स पर रिलीज हुई सीरियस मैन अयान के जहन में
चल रहे विचारों से शुरू होती है। वह एक रिसर्च इंस्टीट्यूट में स्पेस
साइंटिस्ट के पीए हैं। बाॅस उन्हें मोराॅन, नाॅब हैड पुकारते हैं। अयान
ने भी बाॅस को ‘सीरियस मैन’ नाम दिया है। बाॅस माइक्रोस्कोपिक एलियंस की खोज में जुटे हैं। अयान के अनुसार यह एक चूतियास्टिक आइडिया है और
‘सीरियस मैन’ वही होता है, जो किसी कार की पिछली सीट पर बैठा लैपटाॅप पर किसी चूतियास्टिक आइडिया पर रिसर्च कर रहा होता है। यानी अपनी विद्वता के
प्रदर्शन से दूसरों को कमतर और खुद को श्रेष्ठ साबित करना। सीरियस मैन के
इस फंडे को अयान फिल्म में फाॅलो करता दिखाई देता है।
डाॅ अरविंद आचार्य मानव प्रादुर्भाव का पता लगाने के लिए एलियंस की खोज
के नाम पर सरकार से फंड चाहते हैं। अयान देखता है कि डाॅ

आचार्य को पब्लिक जीनियस मानती है। वह जो कहते हैं पब्लिक उसे नहीं
समझती, लेकिन उन्हें तालियां मिलती है, । वह समझ जाता है
कि पब्लिक जिस चीज को नहीं समझती, उसे तालियां, सलामी ठोकती है। यही वह
अपने बेटे को भी समझाता है। वह अपने बेटे को आगे

बढ़ाने के लिए यही तरीका आजमाता है। वह अपने बेटे को वह चीज देना चाहता
है, जिससे वह खुद महरूम रहा। वह उसे जीनियस साबित करने की होड़ में उसके
लिए पेपर खरीदता है। ब्लू टूथ के जरिये उसके कान में सवालों के जवाब
डालकर उसके मुंह से कहलवा उसे  दुनिया के सामने जहीन साबित करता है। उसके
टीवी इंटरव्यू होते हैं। वह छा जाता है।
लेकिन कहानी यहां खत्म नहीं होती। आदि अपनी फ्रेंड सयाली को कम अंक आने
पर उसके पिता के

हाथों पिटते देख उसे एग्जाम पेपर देने का आॅफर रखता है। सयाली को उसका
जीनियस होने का सीक्रेट पता चलता है। आदि उससे

प्राॅमिस लेता है कि वह किसी को यह सीक्रेट नहीं बताएगी, लेकिन ऐसा नहीं हो पाता।
अयान के बढ़ते दबाव से आदि बीमार हो जाता है। इसके बाद अयान को समझ में
आता है कि सर्वश्रेष्ठ बनाने की चाह में बच्चे पर इतना

बोझ डालना ठीक नहीं। पत्नी उसे लानत भेजती है। इस बीच एक सीनियर स्पेस
साइंटिस्ट के साथ मिलकर अयान अरविंद आचार्य को पद

से हटवा देता है। घटनाक्रम कुछ ऐसा बनता है अपनी पोल खुलने से बचाने के
लिए अयान पाॅलिटिकल कनेक्शन से अरविंद को दोबारा

पद दिलाने की पेशकश करता है। अयान अरविंद आचार्य से माफी मांगता है। उसे
अपने परिजनों के साथ गुजरी हकीकत सुनाता है। डाॅ

अरविंद आचार्य को उससे सहानुभूति होती है। वह अयान को झूठ के इस दलदल से
एग्जिट स्ट्र्ेटेजी बताता है। एक वीडियो के जरिये

साइंस का असली मतलब मैथमेटिकल इंप्लिेकेशन नहीं है कहकर आदि से इसे बंद
कर देने को कहता है। अयान को आदि को प्रदर्शनी न

बनाने की सलाह देता है। अब अयान पर जीनियस बनने का दबाव नहीं रहता। इसके
बाद अयान शहर छोड़कर गांव चला जाता है। आदि

का झूठ सच बनकर रह जाता है।
इस बीच कई तरह की सीख भी सीरियस मैन देकर जाता है। जैसे कि बच्चे फूल की
तरह होते हैं। फूल या तो बढ़ते हैं या मर जाते हैं। इन्हें लगातार पानी और
देखभाल की जरूरत है। एक सीख यह भी अपनी महत्वाकांक्षाओं के लिए बच्चे की
क्षमताओं से न खेलें। उनकी देखभाल में दगाबाजी को तो कतई शामिल न करें।
सीरियस मैन जो कुछ हमारे आस पास घट रहा है, उसे एक बंधे फ्रेम में पेश
करती चली जाती है। मनु जोसफ की लिखी कहानी पर बनी सीरियस मैन में हर
एक्टर अपने कैरेक्टर में गंुथा हुआ लगता है। नवाजुद्दीन सिद्दीकी अयान के
रोल में बेहद प्रभावित करते हैं। लगता है यह रोल उन्हीं के लिए लिखा गया
है। डाॅ अरविंद आचार्य की भूमिका में नासर भी बसे हुए लगते हैं। अयान की
पत्नी की भूमिका में इंदिरा तिवारी और आदि की भूमिका में अक्षत दास भी
फिट बैठे हैं। फिल्मों के संवाद चुटीले हैं और आम आदमी की जिंदगी में बेहद घुले मिले। टैलेंट हैज नो कलर, आई कांट डील विद प्रीमिटिव माइंड्स लाइक यू, आदमी बेमतलब पैदा होता है और मर जाता है।

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