डाकुओं ने जब गांव की बेटी को घास काटते देखा तो लूटा सामान आंगन में छोड़ गए

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पुराने जमाने में डाकुओं (decoits) के भी कुछ उसूल होते थे। मसलन वे उस घर में डकैती नहीं डालते थे, जहां उनके गांव की बेटी ब्याही होती थी।

बात पश्चिमी यूपी (west up) के एक बड़े शहर बड़ौत (baraut) की है। आस पास के बहुत से गांवों के लिए मुख्य बाजार बड़ौत ही था। शादी-ब्याह में कपड़े-लत्ते, गहने आदि सब वहीं से खरीदे जाते।

डकैतों (decoits) को अपने मुखबिरों के जरिए अधिकांश गांवों के घरों की खबर रहती ही थी। वे रात बेरात अपना संदेशा घरों के बाहर चस्पा करवा देते।

जिस भी गांव वाले के घर के बाहर डकैतों की चिप्पी लग जाती, उस परिवार पर खौफ तारी हो जाता। एक एक पल खौफ के साए में कटता।

बड़ौत स्थित चीनी मिल रमाला (ramala) गांव निवासी शकुंतला देवी (shakuntla devi) बताती हैं कि डकैतों को बेशक क्रूर माना जाता था, लेकिन ये उनका संवेदनशील पक्ष भी था।

Decoits के किस्से सुनातीं शकुंतला देवी।
Decoits के किस्से सुनातीं शकुंतला देवी।

उनके मुताबिक यह आज से करीब 53 साल पहले सन् 1967 की बात होगी। बड़ौत के पास दोघट में एक डकैती पड़ी।

डकैत घर में मौजूद परिजनों को बंधक बना कर सामान के साथ लौट रहे थे, कि एक डाकू की नजर घेर में गंडासे से घास काट रही युवती पर पड़ी।

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डकैत पहचान गया, ये तो उसके गांव की बेटी श्यामो है, जो इस घर में ब्याही है। उसने इसके बाद पश्चाताप करते हुए सारा सामान घर के आंगन में वापस पहुंचा साथियों समेत वापसी की राह पकड़ ली।

बाद में पता चला कि युवती शादी से पहले गांव के एक स्कूल में युवक की सहपाठी रही थी, जिसके चलते वह उसे पहचान गया।

इसी तरह के कई किस्से हैं, जिनमें जब डाकुओं को पता चला कि अमुक गांव में उनके गांव-नाते की बेटी ब्याही है तो या तो उन्होंने उस गांव का रुख ही नहीं किया या फिर बंधक बना लूटा सामान वापस छोड़ गए।

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