Deoria tal : ट्रेकिंग के साथ ही कीजिए पहाड़ों के अक्स को समेटे खूबसूरत झील का दीदार

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देवरिया ताल (deoria tal) कहिए या देवों की झील! यदि आप भी प्रकृति से प्यार करते हैं? पहाड़ पर ट्रेकिंग करना अच्छा लगता है तो यहां अवश्य जाइए।

उत्तराखंड (uttarakhand) की खूबसूरत वादियों का जवाब नहीं। श्रीनगर से ऊपर की तरफ जाते ही गर्मी का अहसास कम होने लगता है।

लाकडाउन (lockdown) के बीच सारा समय  ट्रेकिंग (trekking) के बारे में सोचते हुए गुजर गया। लेकिन जैसे ही कोरोना संबंधी पाबंदियां हटीं, सोच लिया कि अब देवरिया ताल (deoria tal) ट्रेकिंग पर चला जाए।

दरअसल, चोपता-तुंगनाथ (chopta -tungnath) हम इससे पहले कर चुके थे। हमने सुबह सात बजे ऋषिकेश (rishikesh) से श्रीनगर के लिए ट्रेकर कर लिया।

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सुबह सवा नौ बजे के करीब हम श्रीनगर (srinagar) में थे। जहां से एक परिचित ने आगे का सफर अपने वाहन पर करने की सलाह दी और स्कूटी की चाबी थमा दी।

अब हम और हमारी स्कूटी। श्रीनगर से पहले रुद्रप्रयाग (rudraprayag) पहुंचे। और यहां से बाईपास होते हुए ऊखीमठ (ukhimath) की राह पकड़ ली।

ऊखीमठ से हमें सारी (sari) गांव जाना था, जहां से देवरिया ताल (deoria tal) ट्रेक शुरू होता है। हमने मस्तूरा (mastura) में कुछ देर रूककर एक लोकल चाय की दुकान पर चाय पी।

यहां से सारी केवल पांच किलोमीटर ही दूर रह जाता है। शाम करीब सवा तीन बजे स्कूटी एक परिचित के यहां पार्क कर हमने ट्रेक शुरू कर दिया।

कुछ ही देर के ट्रेक ने पसीने छुटा दिए। ट्रेक पर ही बुरांश के जूस की छोटी सी खोली डाले बुजुर्ग नेगी जी ने हिदायत दी बहुत तेज न चलें। जहां थकान लगे रुक जाएं।

यह करीब 2.5 किलोमीटर का ट्रेक है, जिसका आधा हिस्सा हम पार कर चुके थे। बीच में कोलकाता के ट्रेकर्स का भी एक दल मिला।

ये सभी लोग तेज आवाज में गाने बजाते चल रहे थे। तभी वहां ऊपर से फारेस्ट गार्ड आते नजर आए। उन्होंने तुरंत गाना बंद कराया और कहा शाम का समय है।

इस आवाज से जंगल के जानवर डिस्टर्ब हो सकते हैं। हमला भी कर सकते हैं। फिर क्या था। अपने हाथ पांव फूल गए। अंधेरा होने लगा था।

चारों ओर घना जंगल था। चिड़िया भी पेड़ों से निकलकर आती तो लगता इसके पीछे से कोई जानवर हमला कर देगा।

करीब सवा पांच बजे के आस-पास हम ट्रेक पूरा कर झील के पास पहुंच चुके थे। वन विभाग द्वारा निर्धारित शुल्क चुका जैसे ही हरे भरे घास के मैदान के बीच स्थित झील पर हमारी नजर पड़ी, सारी थकान मिट गई।

झील में पहाड़ का अक्स इसकी खूबसूरती को चार चांद लगा रहा था। झील के एक ओर बुरांश इसकी आभा में वृद्धि कर रहा था।

थोड़ी देर बाद झील के पास बैठकर हम थोड़ी दूर ऊपर की तरफ पेड़ों के झुरमुट के बीच हरी बेंच पर जा बैठे। यहां से सूर्यास्त का शानदार नजारा दिख रहा था।

साथ में आए दल लौट चुके थे, लेकिन हमने रात झील के ही पास बने छोटे से कमरे में गुजारने का फैसला किया, ताकि सुबह सवेरे सूर्योदय का सुंदर नजारा देख सकें।

देवरिया ताल (deoria tal) का यह ट्रेक बेहद शानदार रहा। इस ताल को लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं। कोई मानता है कि जब वनारोहण के दौरान पांडवों को प्यास लगी तो महाबली भीम (bheem) ने यह झील खोदी।

वहीं, एक मान्यता यह है कि प्यास लगने पर युधिष्ठिर को पानी लेने से पूर्व इसी झील पर यक्ष ने प्रश्न पूछे थे। कुछ मानते हैं कि इस झील में देवता स्नान करते थे।

इसीलिए यह झील देवरिया ताल कहलाई। बहरहाल, सभी कथाओं को आत्मसात कर एक घंटे के भीतर झील से वापस कदम बढ़ाते हुए हम पुनः सारी गांव पहुंचे।

यहां थोड़ी देर रुक स्कूटी उठा वापसी की राह पकड़ी। देवरिया ताल (deoria tal) ट्रेक सुनहरी याद बनकर अब दिल में जज्ब हो गया है।

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