मणिकूट पर्वत परिक्रमा : इस धार्मिक पदयात्रा को शिव परिक्रमा के तुल्य माना गया है
1 min readमणिकूट पर्वत (manikoot parvat) परिक्रमा का इतिहास बेहद पुराना है। इसे भगवान शिव (lord Shiva) की परिक्रमा के बराबर दर्जा दिया गया है।
देवाधिदेव महादेव द्वारा प्रणीत ‘योगिनी यंत्र’ के नौवें पटल में मणिकूट पर्वत (manikoot parvat) तथा नीलकंठ (neelkanth) महादेव का वर्णन मिलता है।
‘योगिनी यंत्र’ में भगवान शंकर व पार्वती संवाद है, जिसमें पार्वती भगवान शंकर से प्रश्न करती हैं और भगवान शंकर उनके प्रश्नों का उत्तर देते हैं।
शिवशंकर पार्वती से कहते हैं कि प्रभात काल में मणिकूट के उत्तर की और सब पापों का नाश करने वाली बल्लभा नदी (ballabha river) बहती है।
बल्लभा नदी में माघ या फाल्गुन के महीने में चतुर्दशी में स्नान करने से महापातक नष्ट होते हैं और बल्लभा नदी में स्नान करने के पश्चात नीलकंठ के दर्शन करने से सात जन्मों के पाप नष्ट होते हैं।
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मणिकूट पर्वत (manikoot parvat) से तीन पवित्र नदियों के निकलने का उल्लेख मिलता है। ये नदियां नंदिनी, पंकजा व परमोत्तम मधुमती नदी हैं।
इन नदियों की उपासना की गयी है और इन्हें पापों का नाश करने वाली कल्याणकारी बताया गया है। कहा गया है कि मणिकूट के पूर्व में थोड़ी ही दूर विष्णु पुष्कर (vishnu pushkar) नामक सर्व तीर्थो के जल से परिपूर्ण एक तीर्थ है।
मणिकूटाचल में विष्णु भगवान हृयग्रीव का रूप धारण करके अवस्थित है। मणिकूट पर्वत पर पूर्व अथवा उत्तर मुख करके चढ़ना चाहिए।
मणिकूट पर्वत पर मुख्य रूप से भगवान विष्णु के अवतार हृयग्रीव विष्णु की उपासना की जाती है।
मणिकूट पर्वत स्वयं शिवस्वरूप है। मणिकूट पर्वत को त्रिलोचन कहा गया है। मणिकूट पर्वत में नरसिंह व नागराजा की पूजा की महत्ता है।
केदार खंड में चंद्रकूट पर्वत के ऊपर भगवती भुवनेश्वरी के मंदिर के होने का वर्णन है। कुछ लेखक चंद्रकूट व मणिकूट को एक ही नाम मानते हैं।
यदि इसमें तर्कसंगत है तो पवित्र बल्लभ नदी कालिकुण्ड होकर घूटगड़ में हेमवती/ हिवल नदी में मिलती है।
वर्तमान में मणिकूट पर्वत को एक चोटी तक सीमित करके नहीं रखा जाता बल्कि ऋषिकेश से हरिद्वार के मध्य गंगा तट के पूर्वी भाग की पर्वत मालाओं का शिखर मणिकूट कहलाता है।
लक्ष्मण झूला फूलचट्टी से लेकर बिंदुवासिनी गौरीघाट तक मणिकूट पर्वत का आधार क्षेत्र है। मणिकूट के निकटवर्ती पर्वतों को मणिकूट पर्वत श्रृंखला नाम दिया गया है।
वरिष्ठ पत्रकार एवं हाल ही में मणिकूट परिक्रमा से लौटीं सुलोचना पयाल बताती हैं कि तपस्वी प्राचीन काल में मणिकूट की परिक्रमा अलौकिक शक्तियों के संग्रह करने तथा परमात्मा प्राप्ति के लिए करते थे।
गृहस्थ श्रद्धालु मणिकूट की परिक्रमा सांसारिक लाभ के लिए करते रहे हैं। अधिकांश श्रद्धालु पारिवारिक सुख, पुत्र प्राप्ति, धन सम्पदा चाहने हेतु मणिकूट परिक्रमा करते रहे हैं।