टिहरी के प्रतापनगर में राजा ने क्यों बनाया महल? क्या थी राजा की कसम? जानिए

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उत्तराखंड के टिहरी (tehri) में एक जगह है प्रतापनगर। यहां राजा ने महल बनाया था। इससे पहले उन्होंने एक कसम भी उठाई थी। इस बारे में बता रहे हैं मनमीत…

टिहरी (tehri) के प्रतापनगर (pratapnagar) में राजा का महल (palace) है। वैसे इसे चीफ कोर्ट कहते है।

Chief court, जहां राजा का दरबार लगता था। इसके बगल में ही रानी महल है। दोनों के बीच में एक मैदान है।

ढलान पर एक इंडोर स्क्वैश हॉल और एक इंडोर बिलियर्ड या स्नूकर हॉल था। महल लगभग समुद्र तल से 2170 मीटर की ऊंचाई पर देवदार, कैल और बांज के घने जंगल के बीचों बीच है।

एक तरफ हिमालय (Himalaya) पर्वत श्रंखला साफ-साफ दिखती है तो दूसरी तरफ टिहरी झील (tehri lake)।

Tehri का हिस्सा प्रतापनगर सर्दियों के मौसम में।
Tehri का हिस्सा प्रतापनगर सर्दियों के मौसम में।

सुरकंडा देवी (surkanda Devi) का मंदिर भी यहां से साफ दिखता है। सर्दियों में खूब बर्फ पड़ती है और ज्यादातर समय कोहरा लगा रहता है।

प्रतापनगर को टिहरी के राजा प्रताप शाह (Pratap shah) ने ही बसाया था। आज अगर उनकी आत्मा भटक कर अपने इस महल पर आ जाये तो वो टिहरी झील में कूद मार कर आत्महत्या कर लेंगे।

जी हां, बिल्कुल मर जायेंगे। इतने सुंदर महल का हाल देखकर ऐसा ही करेंगे वो। इतनी सुंदर लोकेशन पर अगर ये महल हिमाचल में होता तो करोडों का टर्नओवर होता।

लेकिन, यहां हाल ये है कि पूरा महल सड़ा डाला काहिली ने। अक्कल देखिए कि चीफ कोर्ट  महल और रानी के महल के बीच जो जगह थी, वहाँ एक सरकारी कार्यालय बनाया गया है।

चीफ कोर्ट के अंदर जहां कभी राजा का दरबार लगता था। आज वहां गोबर ही गोबर है और दीवारों पर किसी टूटे दिल वाले आशिक ने ‘ मैं ममता से प्यार करता हूं’ लिखा है। तो दूसरी दीवारों पर ‘कविता, रश्मि, जानू, मोना आई लव यू बल’ लिखा है।

प्रताप नगर के बसने की भी दिलचस्प कहानी है। एक बार टिहरी के राजा प्रताप शाह 1870 में मसूरी घूमने गए थे परिवार के साथ।

पहले वैसे मसूरी भी टिहरी का ही हिस्सा था, लेकिन फिर एक संधि के तहत अंग्रेजों के पास चला गया। अब राजा प्रताप शाह माल रोड पर टहल रहे थे अपने प्रोटोकॉल के साथ।

सामने से एक युवा कैप्टन आ रहा था। उसने देखा कि ये आदमी इतने लोगों के साथ क्यों माल रोड पर टहल रहा है।

उसने राजा को टोक दिया। राजा को ये बात नागवार गुजरी। अंग्रेजों के हिसाब से राजा मेजर रैंक का था। दोनों में विवाद बढ़ा तो राजा ने कैप्टन को एक जोरदार झापड़ रसीद कर दिया।

कैप्टन जमीन पर गिर गया। उसके प्राण पखेरु उड़ गए। खूब हल्ला मचा। अंग्रेज़ सेना और पुलिस मौके पर पहुंच गई।

राजा पर गैर इरादतन हत्या का मुकदमा होता, इससे पहले ऊपर से फरमान आया कि छोड़ दो। राजा को टिहरी जाने को कहा गया।

छोड़ा इसलिए चूंकि एक बड़ा व्यापार अनुबंध टिहरी रियासत के साथ होने वाला था। लेकिन, साथ में एक आदेश पकड़ाया गया कि अब दुबारा कभी मसूरी में न फिरना।

राजा को काटो तो खून नहीं। उन्होंने लौटते वक्त जबरखेत में कसम खाई की, मैं मसूरी से भी खूबसूरत हिल स्टेशन बसाउंगा।

लौटकर यह बात दरबार के सामने रखी। फिर सर्वे हुवा और सबसे ख़ूबसूरत उस जगह को पाया गया। जहां अब प्रताप नगर है।

यहां राजा ने 1877 अपनी ग्रीष्म कालीन राजधानी घोषित कर दी। छह महीने टिहरी (tehri) नगर में दरबार और छह महीने प्रतापनगर के चीफ कोर्ट पैलेस में।

अच्छा हां, याद आया। ऊपर मैंने एक जगह राजा को मेजर रैंक का बताया था। वो इसलिए कि अंग्रेज़ भारत की उन रियासतों के राजा को मेजर रैंक की उपाधि देते थे। जो उनकी जी हजूरी मान लेते थे।

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जैसे- टिहरी (tehri) रियासत, लंढौरा, सिरमौर रियासत आदि। प्रोटोकॉल के तहत मसूरी में केवल मेजर रैंक के अधिकारी बस सकते थे।

इसलिए भी ज्यादातर रियासतों के हाउस मसूरी में है। जैसे टिहरी (tehri) हाउस, लंढौरा हाउस, कश्मीर हाउस आदि। इससे ऊपर की रैंक यानी कर्नल तक के अधिकारी शिमला में बसते थे। जो केवल अंग्रेज़ होते थे।

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