सुंदरलाल बहुगुणा नहीं रहे, उत्तराखंड में पर्यावरण संरक्षण की अलख जगाता एक सितारा अस्त
1 min readपर्यावरण संरक्षण के लिए आजीवन काम करते रहे उत्तराखंड के बड़े नामों में शामिल सुंदर लाल बहुगुणा (sunder Lal bahuguna) नहीं रहे।
वे करीब 94 साल के थे। आपको बता दें कि उनका जन्म 9 जनवरी, 1927 को उत्तराखंड (uttarakhand), तत्कालीन उत्तर प्रदेश के टिहरी (tehri) में हुआ था।
सुंदर लाल बहुगुणा (sunder Lal bahuguna) महज 13 साल के थे, जब श्रीदेव सुमन (sridev suman) जी ने उनको राजनीति में आने के लिए प्रेरित किया।
सुंदरलाल बहुगुणा ने श्रीदेव सुमन से अहिंसा के मार्ग से न मुश्किलों का हल करने की प्रेरणा पाई। 23 की उम्र में उनका विवाह विमला बहुगुणा से हुआ। इसके बाद उन्होंने राजनीति को तिलांजलि दे दी।
वे पढ़ने के लिए लाहौर भी गए। उन्होंने मंदिरों में हरिजनों के प्रवेश के अधिकार को आंदोलन भी किया।
विवाह पश्चात वे गांव में रहने लगे। उन्होंने टिहरी के आसपास के इलाके में शराब के खिलाफ मोर्चा भी खोला।
1960 के दशक में उन्होंने अपना ध्यान वन और पर्यावरण सुरक्षा की ओर केंद्रित किया। 1970 में शुरू हुआ आंदोलन फैलने लगा।
इसी बीच चिपको आंदोलन हुआ। गढ़वाल हिमालय में पेड़ों के काटने को लेकर शांतिपूर्ण आंदोलन बढ़ रहे थे।
26 मार्च, 1974 को चमोली जिले के रैंणी गांव में ठेकेदार के आदमी पेड़ काटने पहुंचे तो गांव की महिलाएं पेड़ों से चिपककर खड़ी हो गईं।
इस अनोखे विरोध की चर्चा देशभर में हुई। 1980 की शुरुआत में सुंदर लाल बहुगुणा (sunder Lal bahuguna) ने हिमालय में पांच हजार किलोमीटर की यात्रा की।
इस दौरान उन्होंने गांवों में लोगों पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक किया। उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से भी मुलाकात की।
उनसे 15 साल तक के लिए पेड़ों को काटे जाने पर रोक लगाने की अपील की। इसे मंजूर कर लिया गया।
उन्होंने टिहरी बांध (tehri dam) के खिलाफ आंदोलन में भी अहम भूमिका निभाई। उन्होंने कई बार भूख हड़ताल की।
देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव (PV Narsimha Rao) के समय उन्होंने डेढ़ महीने तक भूख हड़ताल की थी।
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सालों तक शांतिपूर्ण प्रदर्शन चलता रहा। लेकिन 2004 में बांध पर फिर से काम शुरू हो गया। उनका जोर देकर मानना था कि इससे सिर्फ धनी किसानों को फायदा होगा और टिहरी के जंगल बर्बाद हो जाएंगे। अपने अंतिम समय तक वे पर्यावरण (environment) के लिए कार्य करते रहे।
उन्हें अपने जीवनकाल में उनकी उपलब्धियों के लिए पद्म विभूषण, जमना लाल बजाज समेत कई पुरस्कार प्राप्त हुए।
सुंदर लाल बहुगुणा के निधन की सूचना उनके पुत्र राजीव नयन बहुगुणा (Rajiv Nayan bahuguna) ने अपने फेसबुक अकाउंट (Facebook account)
https://www.facebook.com/100006443528948/posts/3024735054417916/
के जरिए साझा की।
सुंदर लाल बहुगुणा (sunder Lal bahuguna) ने ऋषिकेश, एम्स (rishikesh, aiims) में आखिरी सांस ली। उनके निधन पर पूरे उत्तराखंड (uttarakhand) में शोक की लहर है।