मंगलेश डबराल नहीं रहे, काव्य जगत में एक बड़ा सूनापन छोड़ गए
1 min readचर्चित कवि मंगलेश डबराल (manglesh dabral) नहीं रहे। 72 साल की उम्र में उन्होंने अंतिम सांस ली। कुछ समय से वह दिल्ली के एक अस्पताल में भर्ती थे।
समकालीन हिंदी कविता क्षेत्र में वह बड़ा सूनापन छोड़ गए। अपनी कविताओं के लिए चर्चा में रहने वाले मंगलेश डबराल (manglesh dabral) का जन्म १६ मई १९४८ को उत्तराखंड स्थित टिहरी गढ़वाल के काफलपानी गांव में हुआ था।
आपको बता दें कि उनकी शिक्षा-दीक्षा देहरादून में हुई। इसके बाद दिल्ली आकर उन्होंने हिन्दी पैट्रियट, प्रतिपक्ष और आसपास में काम किया।
इसके पश्चात वह वे भोपाल चले गए। वहां वह मध्यप्रदेश कला परिषद्, भारत भवन से प्रकाशित साहित्यिक त्रैमासिक पूर्वाग्रह में सहायक संपादक रहे।
उन्होंने इलाहाबाद और लखनऊ से प्रकाशित अमृत प्रभात में भी कुछ दिन तक नौकरी की। सन् १९८३ में उन्होंने जनसत्ता में साहित्य संपादक का पद संभाला।
कुछ समय सहारा समय में संपादन कार्य करने के बाद वे नेशनल बुक ट्रस्ट (national book trust) से जुड़ गए।
मंगलेश डबराल के पांच काव्य संग्रह प्रकाशित हुए हैं। यह हैं- पहाड़ पर लालटेन, घर का रास्ता, हम जो देखते हैं, आवाज भी एक जगह है और नये युग में शत्रु। इसके अलावा उनके दो गद्य संग्रह लेखक की रोटी और कवि का अकेलापन भी प्रकाशित हुए हैं।
एक यात्रावृत्त एक बार आयोवा भी प्रकाशित हुआ है। उन्हें दिल्ली हिन्दी अकादमी का साहित्यकार सम्मान, कुमार विकल स्मृति पुरस्कार और अपनी सर्वश्रेष्ठ रचना हम जो देखते हैं के लिए साहित्य अकादमी की ओर से सन् २००० में साहित्य अकादमी पुरस्कार भी दिया गया।
मंगलेश डबराल ने अनुवादक के रूप में भी ख्याति अर्जित की। उनकी कविताओं के भारतीय भाषाओं के अलावा अंग्रेज़ी, रूसी, जर्मन, डच, स्पेनिश, पुर्तगाली, इतालवी, फ़्रांसीसी, पोलिश और बुल्गारियाई भाषाओं में भी अनुवाद प्रकाशित हुए हैं।
कविता के अतिरिक्त वे साहित्य, सिनेमा, संचार माध्यम और संस्कृति के विषयों पर नियमित लेखन भी करते रहे।
मंगलेश की कविताओं में सामंती बोध एवं पूंजीवादी छल-छद्म दोनों का प्रतिकार दिखा। उनकी कविता के अंश के साथ उन्हें नमन-
‘मिट्टी, हवा, पानी, जरा सी आग,
थोड़े से आकाश से बनी है मेरी
देह
उसे फिर से मिट्टी, हवा, पानी और
आकाश में मिलाना है आसान
पूरी तरह भंगुर है मेरा वजूद
उसे बिना मेहनत के मिटाया जा
सकता है
उसके लिए किसी अतिरिक्त
हरबे-हथियार की जरूरत नहीं
होगी
यह तय है कि किसी ताकतवर
की एक फूंक ही
मुझे उड़ाने के लिए काफी होगी
मैं उड़ जाऊंगा सूखे हुए पत्ते, नुचे
हुए पंख, टूटे हुए तिनके की तरह…।