ग्लेशियर क्या होते हैं? यह क्यों टूटते हैं? इनसे तबाही का क्या संबंध है? जानिए
1 min readचमोली (chamoli) जिले में आई आपदा के पीछे वजह ग्लेशियर (glacier) टूटने को बताया जा रहा है। क्या आप जानते हैं कि ग्लेशियर (glacier) क्या होते हैं?
यदि नहीं, तो हम आपको बताते हैं। दरअसल, ग्लेशियर को हिंदी में हिमनद कहते हैं। हिमनद यानी बर्फ की नदी।
आम तौर पर हिमनद जब टूटते हैं तो स्थिति काफी विकराल होती है। बर्फ पिघलकर पानी बनता है और उस क्षेत्र की नदियों में समा जाता है।
इससे नदियों में जलस्तर अचानक काफी ज्यादा बढ़ जाता है। पहाड़ी क्षेत्र होने की वजह से पानी का बहाव भी काफी तेज होता है। ऐसी स्थिति तबाही लाती है।
आपको बता दें कि ग्लेशियर सालों तक भारी मात्रा में बर्फ के एक जगह जमा होने से बनता है। ये दो तरह के होते हैं, अल्पाइन ग्लेशियर (Alpine glacier) और आइस शीट्स (ice sheets)।
पहाड़ों के ग्लेशियर अल्पाइन कैटेगरी में आते हैं। पहाड़ों पर ग्लेशियर टूटने की कई वजहें हो सकती हैं।
ग्लोबल वार्मिंग (global warming) के चलते बर्फ (ice) पिघलने से भी ग्लेशियर का एक हिस्सा टूटकर अलग हो सकता है। जब ग्लेशियर से बर्फ का कोई टुकड़ा अलग होता है तो उसे काल्विंग कहते हैं।
आपको बता दें कि ग्लेशियर टूटने से आने वाली बाढ़ का नतीजा बेहद भयानक हो सकता है। ऐसा आमतौर पर तब होता है जब ग्लेशियर के भीतर ड्रेनेज ब्लॉक हो जाता है।
पानी अपना रास्ता ढूंढ लेता है और जब वह ग्लेशियर के बीच से बहता है तो बर्फ पिघलने की दर बढ़ जाती है। इससे उसका रास्ता बड़ा होता जाता है। बर्फ भी पिघलकर बहने लगती है। इसे आउटबर्स्ट फ्लड कहते हैं। ये आमतौर पर पहाड़ी इलाकों में आती हैं।
ग्लेशियर कब टूटेंगे, इसका अंदाजा लगा पाना लगभग नामुमकिन होता है। बर्फ हर साल जमा होती रहती है।
मौसम बदलने पर यह बर्फ पिघलती है जो नदियों में पानी का मुख्य स्त्रोत होता है। ठंड में बर्फबारी होने पर पहले से जमीं बर्फ दबने लगती है। उसका घनत्व (Dnesity) काफी बढ़ जाता है।
हल्के क्रिस्टल (Crystal) ठोस (Solid) बर्फ के गोले यानी ग्लेशियर में बदलने लगते हैं। नई बर्फबारी होने से ग्लेशियर नीचे दबने लगते हैं। और कठोर हो जाते हैं, इससे घनत्व काफी बढ़ जाता है। इसे फर्न (Firn) कहते हैं।
इस प्रक्रिया में ठोस बर्फ की बहुत विशाल मात्रा जमा हो जाती है। बर्फबारी के कारण पड़ने वाले दबाव से फर्न बिना अधिक तापमान के ही पिघलने लगती है और बहने लगती है।
हिमनद तब तक खतरनाक नहीं होते जब तक यह हिमस्खलन में तब्दील न हो जाएं। हिमस्खलन में बहुत अधिक मात्रा में बर्फ पहाड़ों से फिसलकर घाटी में गिरने लगती है।
इसके रास्ते में जो कुछ आता है सब तबाह होता है। ग्लेशियर (glacier) का पानी के साथ मिलना इसे और ज्यादा विनाशक बना देता है।
पानी का साथ मिलते ही ग्लेशियर टाइडवॉटर ग्लेशियर बन जाते हैं। बर्फ के विशाल टुकड़े पानी में तैरने लगते हैं।
ये ग्लेशियर नदियों में पानी का प्रमुख स्रोत हैं। ग्लेशियर का टूटना या पिघलना ऐसी दुर्घटनाएं हैं, जो बड़ी आबादी पर असर डालती हैं।
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ग्लेशियर में कई बार बड़ी-बड़ी दरारें होती हैं, जो ऊपर से बर्फ की पतली परत से ढंकी होती हैं। ये जमी हुई मजबूत बर्फ की चट्टान की तरह ही दिखती हैं।
ऐसी चट्टान के पास जाने पर वजन पड़ते ही ग्लेशियर में मौजूद बर्फ की पतली परत टूट जाती है और व्यक्ति सीधे बर्फ की विशालकाय दरार में जा गिरता है।
इसी तरह यदि भूकंप या कंपन होता है तब भी चोटियों पर जमी बर्फ खिसककर नीचे आने लगती है, जिसे एवलॉन्च (avlanche) कहते हैं। कई बार तेज आवाज, विस्फोट के कारण भी एवलॉन्च आते हैं।