आशापूर्णा देवी: पहलीं ज्ञानपीठ अवार्ड विजेता, 13 साल की उम्र में छपी थी पहली कविता

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कवय़ित्री और उपन्यासकार आशापूर्णा देवी (ashapurna devi) पहली ज्ञानपीठ अवार्ड विजेता थीं। उन्होंने केवल 13 साल की उम्र में पहली कविता लिख दी थी।

आठ जनवरी, 2021 को आशापूर्णा देवी (ashapurna devi) की 111वीं जयंती है। आपको बता दें कि आशापूर्णा देवी का जन्म 1909 में पश्चिम कोलकाता (Kolkata) में हुआ।

ये वह समय था, जब बंगाली समाज में बालिकाओं की शिक्षा के प्रति संकीर्ण विचारधारा व्याप्त थी। ऐसे समय में आशापूर्णा देवी की शिक्षा की ओर ध्यान कौन देता।

उनके घर में ट्यूटर आता था, लेकिन उसके पास केवल उनके भाई को पढ़ाने का जिम्मा था। आशापूर्णा देवी उसी कमरे में भाई की ओर पीठ किए बैठे रहती थीं।

शिक्षक भाई को जो कुछ सिखाते थे, आशापूर्णा देवी उसे आत्मसात कर लेती थीं। इस तरह उन्होंने अक्षरज्ञान हासिल किया।

छोटी उम्र में ही कविता रचने वाली आशापूर्णा देवी ने अपनी कविता को ‘शिशु साथी’ पत्रिका में छपने के लिए भेज दिया।

यह कविता ‘बैरर डाक’ शीर्षक से छपी। कविता के संपादक राजकुमार चक्रवर्ती ने उनसे और कविताएं भेजने के लिए कहा। आशापूर्णा देवी की मां को किताबों को बहुत शौक था।

वह इस जगह रहकर हालांकि बहुत पढ़ नहीं पा रही थीं। ऐसे में उन्हें लाभ तब हुआ, जब उनके पति यानी आशापूर्णा के पिता हरेंद्रनाथ ने दूसरी जगह घर ले लिया।

यहां अपनी मां से ही आशापूर्णा और उनकी बहन को पढ़ने की लत लगी। धीरे धीरे उनका लेखन कार्य लोगों को अपनी ओर खींचने लगा।

उनकी रचनाएं प्रथम प्रतिश्रुति, स्वर्ण लता और बकुल कथा बेहद सराही गईं। यहां तक कि प्रथम प्रतिश्रुति  के लिए उन्हें 1976 में पहला ज्ञानपीठ (gyanpeeth) अवार्ड दिया गया।

उनकी इस रचना पर दूरदर्शन में एक सीरियल प्रथम प्रतिश्रुति भी प्रसारित हुआ। इसके बाद उन्हें साहित्य एकेडमी (sahitya academy) की ओर से वहां का सबसे बड़ा पुरस्कार साहित्य एकेडमी स्काॅलरशिप मिली।

आशापूर्णा देवी ने आज से 25 साल पहले 1995 में अंतिम सांस ली। उन्हें आज भी उनके साहित्यिक कार्य के लिए याद किया जाता है।

भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया। डीलिट की भी मानद उपाधि उन्हें हासिल हुई।

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