चौधरी चरण सिंह देश के इकलौते प्रधानमंत्री रहे, जो इस पद पर रहते कभी संसद नहीं गए
1 min readदेश के पूर्व प्रधानमंत्री, उप प्रधानमंत्री और दो बार यूपी के सीएम रहे किसानों के मसीहा चौधरी चरण सिंह (Chaudhary Charan Singh) की आज जयंती है।
वह भारत के इकलौते ऐसे प्रधानमंत्री रहे, जो इस पद पर रहते हुए कभी संसद नहीं गए। उनका कोई भाषण तीन घंटे से कम का नहीं होता था।
जहां आज नेता अपने बारे में positive story के लिए लालायित रहते हैं, चौधरी चरण सिंह (Chaudhary Charan Singh) कार्यकर्त्ताओं से कहते थे कि press अगर तारीफ करने लगे तो समझ लेना चरण सिंह में गड़बड़ी हो गई है।
आपको बता दें कि दुनिया को अलविदा कहते वक्त उनके पास न अपना कोई घर था, न खेती की जमीन और न कार। बीमारी से लड़ने में 22 हजार के बैंक बैलेंस में से केवल 4500 की रकम बची थी।
चरण सिंह तत्कालीन मेरठ जिले (अब हापुड़ में) के छोटे से गांव नूरपुर की मंडैया की झोपड़ी में 23 दिसंबर, 1902 में जन्में थे।
उनका बचपन आर्थिक संकट से जूझते गुजरा। इसी बीच उनका परिवार पहले नूरपुर की मंडैया से जानी के पास भूपगढ़ी और बाद में खरखौदा के निकट स्थित भदौला गांव शिफ्ट हो गया।
महात्मा गांधी से प्रभावित होकर आगरा यूनिवर्सिटी (Agra University) से लॉ (law) की डिग्री ली। 1930 में नमक कानून तोड़ने पर वे छह माह जेल में रहे। सत्याग्रह आंदोलन में जेल भी गए
चौधरी चरण सिंह ने अंग्रेजी राज के खिलाफ चल रहे स्वतंत्रता संग्राम के दौरान ही सियासी सफर शुरू किया। 34 साल की उम्र में फरवरी 1937 में वे यूनाइटेड प्रोविंसेज की लेजिस्लेटिव एसेंबली की छपरौली सीट से चुने गए।
1938 में उन्होंने एग्रीकल्चरल प्रोड्यूस मार्केट बिल असेंबली में पेश किया। पंजाब ने सबसे पहले किसान हित के इस बिल को 1940 में लागू किया और बाद में यह देश के अधिकांश राज्यों में लागू किया गया।
1952 में वह प्रदेश सरकार में राजस्व मंत्री बने। उन्होंने तब जमींदारी उन्मूलन और भूमि सुधार एक्ट लागू किया।
जमींदारी उन्मूलन में बाधा पैदा करने पर उन्होंने एक साथ पूरे प्रदेश में पटवारियों के बस्ते छिनवा लिए थे। इस कदम के बाद वह ‘किसानों के चैंपियन’ बन गए।
उनके भूमि सुधारों को दुनिया भर में सराहा गया। चुनाव के वक्त वे गांव-गांव गली-गली निकल पड़ते।
रात में किसानों के घरों में ही रुकते और उन्हीं से चुनाव के लिए एक वोट और एक नोट मांगते। इस तरह जो चंदा इकट्ठा होता उसी से पार्टी चलती।
आपको बता दें कि आर्थिक नीतियों और खासतौर पर सहकारी खेती पर उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के मॉडल का खुला विरोध किया था।
वे किसानों को जमीन पर मालिकाना हक के पैरोकार थे। केद्रीय गृह मंत्री रहते हुए उन्होंने शानदार काम किया।
पाकिस्तान की परमाणविक शक्ति बनने की धमकियों पर उन्होंने 15 अगस्त, 1979 को ऐतिहासिक भाषण दिया।
चौधरी चरण सिंह राजनीतिक अर्थशास्त्र के बड़े जानकार थे। उन्होंने इंडियन इकॉनॉमिक पॉलिसी-द गांधियन ब्लूप्रिंट नामक पुस्तक लिखी थी।
साथ ही कोऑपरेटिव फार्मिंग- एक्स रेड और इकॉनॉमिक नाइटमेयर ऑफ इंडिया-इट्स क्योर एंड कॉज नाम की पुस्तकें भी लिखीं। इन्हें अमेरिकी विश्वविद्यालयों में भी पढ़ाया गया।
चौधरी चरण सिंह जातिवाद के घोर विरोधी थे। उनका रसोइया दलित था, जिसने उनके यहां 20 साल तक खाना बनाया।
आपको बता दें कि वे देश के पांचवें प्रधानमंत्री बने और 28 जुलाई 1979 से 14 जनवरी 1980 तक इस पद पर रहे।
इससे पूर्व 24 मार्च 1977 से 28 जुलाई 1979 तक वे देश के उप प्रधानमंत्री रहे। वे दो बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री भी रहे।
3 अप्रैल 1967 से लेकर 25 फरवरी 1968 तक और 18 फरवरी 1970 से एक अक्तूबर 1970 तक। किसानों के इस मसीहा के योगदान को हमेशा याद रखा जाएगा।