Leopard को पेट में गोली लगी थी, वह पेड़ से मेरे ऊपर कूदने वाली ही थी कि…

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उत्तराखंड के रिहायशी इलाकों में भी अब गुलदार (leopard) का खौफ कम नहीं। लखपत सिंह रावत उत्तराखंड के मशहूर शिकारी हैं।

उन्होंने https://khaskhabar24.com से एक किस्सा शेयर किया, जिसमें वह मौत के मुंह में जाने से बाल बाल बचे।

शिकारी लखपत सिंह रावत (hunter Lakhpat Singh Rawat) ने बताया-आज से करीब 15 वर्ष पहले की बात है। वह सन् 2007 था। चंपावत (Champawat) में एक मादा गुलदार (leopard) की दहशत थी। उसने दो बच्चों को निवाला बना लिया था।

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स्थानीय लोगों में इसे लेकर बहुत आक्रोश था। फारेस्ट (forest) के परमिट (permit) पर उसे मारने का जिम्मा मिला था। वे बताते हैं- ऐसे में हम गुलदार (leopard) को टारगेट पर लेने में जुट गए।
एक रात मादा गुलदार के ट्रेसेज (traces) मिले, जिसके आधार पर वे मादा गुलदार का ठिकाना ढूंढने लगे। जल्द ही मादा गुलदार से उनका सामना भी हो गया।
बकौल लखपत रात हो चुकी थी। उन्होंने गुलदार पर गोली चलाई, जो उसके पेट में जाकर लगी। लेकिन मादा गुलदार मरी नहीं। घायल हो वह जंगल में लुप्त हो गई। लखपत साथी के साथ उसका पीछा करते हुए आगे बढ़े तो उसे करीब 5 मीटर की ऊंचाई पर पेड़ पर चढ़े देख चैंक गए। उनकी सांसें अटक गईं।
मादा गुलदार ने उन पर जंप की मुद्रा बनाई ही थी कि हडबड़ाए लखपत ने तुरंत उस पर फायर झोंक दिया। गोली मादा गुलदार के माथे के बीचों-बीच लगी थी। वह ढेर हो गई।
लखपत के बतौर उस दिन मौत इतनी पास लगी कि लगा अब बच नहीं सकेंगे। वे अब तक उस दिन गोली के सही जगह लगने पर शुक्र जताते हैं।
बतौर लखपत अब गुलदार के आचार व्यवहार में भी तब्दीली देखने को मिल रही है। वे अधिकांश बस्तियों के नजदीक जा रहे हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि मानव ने अब जंगलों में ही बस्तियां बसा ली हैं। उनके प्राकृतिक अरण्य पर कब्जा जमा लिया है।

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