महाराणा प्रताप : 81 किलो के भाले से रणभूमि में दुश्मन को चित्त करते थे महाराणा

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मेवाड़ के महाराणा प्रताप (maharana Pratap) की 19 जनवरी को पुण्यतिथि है। क्या आपको पता है कि महाराणा का भला 81 किलो का था?

जी हां, यह सुनकर आपको आश्चर्य लग सकता है, लेकिन बताया जाता है कि अकेले महाराणा प्रताप (Maharana Pratap) के कवच का ही वजन 72 किलो था।

और यदि इस वजन में म्यान में रखी उनकी दोनों तलवारों को भी शामिल किया जाए तो महाराणा युद्ध में 281 किलो का वजन लेकर उतरते थे।

महाराणा की वीरता में कई इतिहासकारों ने लेख लिखे हैं। महाराणा प्रताप और उनके घोड़े चेतक (chetak) के किस्से भी राजस्थान में बहुत मशहूर  हैं।

1576 में हल्दीघाटी (haldighati) के युद्ध में उन्होंने अकबर की सेना को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया था। वह ऐसे वीर थे कि जिस युद्ध में हार जीत का कोई फैसला ना हुआ उसमें उनकी वीरता के गुण गाए गए।

उन्होंने मुगलों की पराधीनता को स्वीकारने से साफ इनकार कर दिया था। बताया जाता है बगैर युद्ध उन्हें इसके लिए मनाने को 1572-73 में अकबर के प्रतिनिधि टोडर मल, मान सिंह आदि गए, लेकिन महाराणा नहीं माने।

महाराणा प्रताप का जन्म 1540 में कुंभलगढ़ (kumbhalgarh) के किले में हुआ था। कुछ उनका जन्म पाारीमें हुआ भी बताते हैं।

उनके पिता का नाम महाराणा उदय सिंह (Uday Singh) था। महाराणा प्रताप मेवाड़ (mewar) के 13वें राणा थे। बताया जाता है कि उन्होंने 11 शादियां की और उनके 17 बच्चे थे।

शुरू से ही महाराणा को बहुत वीर माना जाता था। उनकी वीरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने 500 भीलों के सहारे मानसिंह की बड़ी सेना से लोहा लिया था।

1597 में 57 साल की उम्र में जब महाराणा प्रताप ने चावंड (chawand) में प्राण त्यागे तो बताया जाता है कि अकबर उस समय लाहौर (lahore) में थे और अपने इस दुश्मन की मौत की खबर सुनकर मुगल बादशाह अकबर (Mughal empror Akbar) की आंखों में आंसू आ गए थे।

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