पहाड़ों के अबूझे रहस्य को जानने गोमुख ग्लेशियर से आगे, आकाशगंगा के किनारे

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पहाड़ों (mountains) के बारे में इतना कुछ अबूझा-अजाना होता है कि कोई जानने चले तो जीवन निकल जाए। मनमीत के शब्दों में गोमुख ग्लेशियर से आगे…

धीरे धीरे संभलते हुए जब मैंने गोमुख ग्लेशियर को पार किया तो सामने खड़ी चढ़ाई थी। लगभग तीन किलोमीटर खड़ी।

आकाशगंगा (akashganga) नदी के किनारे किनारे मैं उस चढ़ाई पर चढ़ता गया। लगातार, बिना रुके।

धीरे-धीरे ऑक्सीजन लेवल (oxygen level) कम हो रहा था। सांस कुछ ऐसे ही ले रहा था, जैसे न्यूमोनिया का मरीज बिस्तर पर लेटकर लेता है।

जब ऊपर पहुंचा तो मेरे सामने शिवलिंग पर्वत (mountain) स्वागत को खड़ा था। पीछे भागरथी पर्वत (mountain) की तीनों चोटियां थी।

इन महान पर्वतों (mountains) के बीच में अकेला इन सबका आकर्षक (attraction) महसूस कर रहा था। सोच रहा था अब कहाँ जाऊं।

मैं आगे बढ़ने लगा। दोपहर के दो बजे चुके थे। सुंदर वन (sunder van) में मैंने एक जल धारा का पानी पिया।

और कुछ देर सुस्ताने को हुआ । आंख लगी ही थी कि मेरे चारों ओर भरल चहलकदमी करने लगे। मैं उठ गया। सभी मिरे आसपास बैठ गए। अजल की शांति थी।

मैं ऊहापोह में था कि आगे जाऊं या लौट जाऊं। हल्की बर्फबारी (snowfall) होने लगी। धीरे धीरे सफेद चादर सी बिछने लगी।

ये मौसम (weather) की पहली बर्फबारी थी। सर्द हाड़ कंपाने वाली हवाएं चलने लगीं। मैं प्रकृति (nature) से अदावत नहीं करता। धीरे धीरे लौट आया।

पहाड़, बारिश, बर्फ, मिट्टी की सुगंध…। इन शब्दों को कोई सिर्फ महसूस कर सकता है, लेकिन पहाड़ को जीने वाले व्यक्ति के लिए यह आक्सीजन जैसा ही मामला होता है।

यह हर शै यहां के लोगों के खून में जैसे रच बस गई है। इस दुनिया से अलग कोई दुनिया नहीं। या कोई दुनिया है भी तो वहां ऐसा सुकून कतई नहीं, जो जीवन को ‘ज़िंदगी’ से मिला सके। उसे पूरा कर सके।

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