नौशाद के पिता ने कहा था, ‘संगीत छोड़ दो या घर’, नौशाद ने घर छोड़ दिया
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मशहूर संगीतकार नौशाद (Naushad) की 25 दिसंबर को 101वीं जयंती है। करीब 19 साल की उम्र में संगीत के लिए उन्होंने अपना घर छोड़ दिया।
दरअसल, उनके परिवार में संगीत को कोई तवज्जो नहीं दी जाती थी, जबकि नौशाद का दिल संगीत में ही रमता था।
उन्होंने 13 साल की उम्र से ही सिनेमा में दिलचस्पी लेनी शुरू कर दी। वह मूक फिल्मों का जमाना था।
कलाकार फिल्म के प्रदर्शन के दौरान स्क्रीन के आगे बैठकर इंस्ट्रूमेंट्स से बैकग्राउंड म्यूजिक दिया करते। नौशाद भी इन्हीं में शामिल हो गए।
उनके पिता और पेशे से अकाउंट क्लर्क (account clerk) वाहिद अली (wahid ali) को इस बात का पता चल गया तो वे बहुत गुस्सा हुए।
उन्होंने नौशाद (Naushad) से कहा कि वे संगीत या घर। दोनों में से एक चुन लें। नौशाद ने घर छोड़ना मंजूर किया।
आपको बता दें कि नौशाद अली (Naushad ali) का जन्म 25 दिसंबर, 1919 में लखनऊ में हुआ था।
पिता से कहासुनी के बाद 1937 में वह मुंबई तब (बंबई) आ गए। वहां वे कोलाबा में अपने एक रिश्तेदार के यहां ठहरे।
इसके बाद वे दादर में शिफ्ट हो गए। वहां वह कई दिन फुटपाथ पर भी सोए। इसके बाद वे म्यूजिक डायरेक्टर उस्ताद झंडे खां के यहां ₹40 मासिक तनख्वाह पर नौकरी पर लग गए।
नौशाद की बतौर संगीतकार पहली फिल्म प्रेमनगर आई। यह 1940 का वक्त था। लेकिन जिस फिल्म ने उन्हें सफलता का स्वाद चखाया, वह रतन थी। यह फिल्म 1944 में आई थी। इस फिल्म के बाद उन्होंने अपनी फीस 28 हजार कर दी और फिर मुड़कर नहीं देखा।
बताया जाता है कि यह फिल्म केवल 75 रुपए में बनी थी। लेकिन उसके गाने इतने मशहूर हुए कि ग्रामोफोन रिकार्ड की सेल तीन लाख तक पहुंच गई।
इसके बाद नौशाद का जमाना था। उनकी फ़िल्मों का संगीत इतना मकबूल हुआ कि तीन फिल्मों ने डायमंड जुबली की।
उनकी संगीतबद्ध 12 फिल्मों ने गोल्डन, जबकि 35 फिल्मों ने सिल्वर जुबली की। उनके संगीत निर्देशन में बनी फिल्म मदर इंडिया हिंदी की पहली फिल्म थी, जिसका प्रतिष्ठित आस्कर (Oscar) पुरस्कार के लिए नामांकन (nomination) हुआ।
अपने जीवन काल में उन्होंने मदर इंडिया, मुग़ल-ए-आज़म, राम और श्याम, साथी, अनमोल घड़ी, शाहजहां, बाबुल, दीदार जैसी कई फिल्मों के लिए शानदार संगीत दिया।
उन्हें तमाम पुरस्कारों के बीच फिल्म इंडस्ट्री का सर्वाधिक प्रतिष्ठित अवार्ड दादा साहब फाल्के अवार्ड भी मिला।
86 साल की उम्र में उन्होंने कार्डियेक अरेस्ट (cardiac arrest) की वजह से दम तोड़ दिया। मुंबई (Mumbai) की कार्टर रोड का नाम भी सम्मान स्वरूप उनके नाम पर संगीत सम्राट नौशाद मार्ग रखा गया।
उनके जीवन पर कुछ फिल्में भी बनीं। हब्बा खातून ऐसी फिल्म थी, जिसका उन्होंने संगीत दिया, लेकिन वह रिलीज न हो सकी।