ओंकारेश्वर मंदिर : जहां एक पैर पर 12 वर्ष तप के बाद राजा मांधाता को हुए शिव दर्शन

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केदारनाथ बाबा की उत्सव डोली 14 मई को ऊखीमठ के ओंकारेश्वर (omkareshwar) मंदिर से रवाना होगी। आज हम आपको इसी मंदिर का इतिहास बताएंगे।

कहा जाता है कि उत्तराखंड के इसी क्षेत्र में बाणासुर की पुत्री उषा (Usha) और भगवान श्रीकृष्ण (lord srikrishna) के पौत्र अनिरुद्ध (anirudh) का विवाह यहां हुआ था।

उषा के नाम पर इस स्थान का नाम उषामठ (ushamath) रखा गया। जिसे कालांतर में ऊखीमठ (ukhimath) के नाम से पुकारा गया।

आपको बता दें कि ऊखीमठ में उषा, भगवान शिव, देवी पार्वती, अनिरुद्ध और मांधाता को समर्पित कई कलात्मक प्राचीन मंदिर हैं।

ऊखीमठ में मुख्य रूप से रावल रहते हैं, जो केदारनाथ (kedarnath) के प्रमुख पुजारी (पंडित) हैं।

अब आपको बता दें कि ओंकारेश्वर omkareshwar मंदिर में राजा मंधाता की एक पत्थर की मूर्ति भी है।

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यह इस स्थान के नाम से जुड़ी है। ‌ किंवदंती के मुताबिक, राजा मांधाता ने अपने आखिरी सालों के दौरान अपने साम्राज्य सहित सब कुछ छोड़ दिया।

वे ऊखीमठ आए और एक पैर पर खड़े होकर 12 वर्षों तक तपस्या की। कहा जाता है कि अंत में भगवान शिव ध्वनि ’ओंकार…’ के रूप में प्रकट हुए‌।

उन्होंने राजा मांधाता को आशीर्वाद दिया। बताते हैं कि उसी दिन से इस स्थान को ओंकारेश्वर के नाम से जाना जाने लगा।

ऊखीमठ से हिमालय की शानदार बर्फ से लकदक चोटियां नजर आती हैं। यदि मौसम साफ हो तो यहां से केदारनाथ शिखर, चौखम्बा और खूबसूरत वादी के दृश्य दिखते हैं।

Omkareshwar मंदिर का भीतरी दृश्य।
Omkareshwar मंदिर परिसर का भीतरी दृश्य।

यहां का नजदीकी एयरपोर्ट देहरादून जिले में स्थित जौली ग्रांट एयरपोर्ट माना जाता है यहां से ऋषिकेश की दूरी करीब पौने दो सौ किलोमीटर है।

केदारनाथ मंदिर (kedarnath mandir) के कपाट बंद होने के बाद उनकी शीतकालीन पूजा इसी मंदिर में की जाती है।

अब मंदिर के खुलने की तिथि तय हो गई है, ऐसे में जल्द ही उत्सव डोली की रवानगी की तैयारी भी शुरू हो जाएगी पिछले साल कोरोना संक्रमण काल की वजह से यात्रा प्रभावित हुई थी। उम्मीद है कि इस बार बाबा केदार सब भला करेंगे।

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