सुभाष घई : एक वक्त सेट पर नहीं घुसने दिया जाता था, बाद में इंडस्ट्री के शोमैन कहलाए

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फिल्म इंडस्ट्री के शो मैन सुभाष घई (Subhash ghai) 24 जनवरी, 2021 को 76 वर्ष के हो गए। एक वक्त था, जब उन्हें सेट पर भी नहीं घुसने दिया जाता था।

लेकिन (Subhash ghai) हारे नहीं। उन्होंने धैर्य से काम लिया। डेल कार्नेगी (Dale karnegi) जैसे मोटिवेशनल लेखकों की किताबों से पाजिटिवटी और बेहतर संबंध बनाने के गुर सीखे।

एक्टिंग में कामयाबी नहीं मिली तो डायरेक्शन का रुख किया। फिर जो सफलता उन्होंने पाई, उस पर जमाने को रश्क हुआ। जानते हैं उनके सफ़र के बारे में-

सुभाष घई का जन्म 24 जनवरी, 1945 को नागपुर (nagpur) में हुआ। उनके पिता दिल्ली में डेंटिस्ट (dentist) थे।

बाद में घई ने हरियाणा (haryana) के रोहतक (rohtak) से कॉमर्स की डिग्री ली और उसके बाद एफटीआईआई पुणे (FTTI, Pune) में दाखिला ले लिया।

इसके बाद फिल्मों में अपनी किस्मत आजमाने सुभाष घई (Subhash ghai) मुंबई चले आए। यहां उनकी कोई पूछ नहीं हुई। निर्माता, निर्देशक मिलने को तैयार न होते।

धीरे धीरे उनकी पहचान होने लगी। इस बीच उन्होंने स्क्रीन टेलेंट कंपटीशन में शिरकत की। इसमें राजेश खन्ना, धीरज कुमार के साथ ही वे भी चुने गए।

लेकिन अभी किस्मत के दरवाजे नहीं खुले थे। उन्हें 1967 में  तकदीर और 1969 में आई राजेश खन्ना की फिल्म आराधना में छोटा सा रोल मिला।

लेकिन वे तो बड़े पर्दे पर मेन लीड में दिखना चाहते थे। 1970 में आई उमंग और 1976 में आई गुमराह में वे मुख्य भूमिका में आए, लेकिन बात जमी नहीं।

आखिरकार शत्रुघ्न सिन्हा के इसरार पर उन्होंने कालीचरण फिल्म को डायरेक्ट कर  नई राह पर कदम धर दिए।

Subhash ghai ताल फिल्म की शूटिंग के दौरान अक्षय खन्ना को सीन समझाते हुए। (फाइल फोटो)
Subhash ghai ताल फिल्म की शूटिंग के दौरान अक्षय खन्ना को सीन समझाते हुए। (फाइल फोटो)

इसके बाद उन्हें पीछे मुड़कर नहीं देखना पड़ा। उन्होंने विश्वनाथ, कर्ज, विधाता, मेरी जंग, हीरो, करमा, राम लखन, त्रिमूर्ति, ताल, सौदागर, परदेस जैसी कई मशहूर फिल्में दीं।

परदेस (pardes) और सौदागर (saudagar) के लिए उन्हें फिल्मफेयर अवार्ड (filmfare award) भी मिला।

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हीरो फिल्म से जहां जैकी श्रॉफ (Jackie Shroff) फिल्म इंडस्ट्री में लॉन्च हुए वही मेरी जंग से अनिल कपूर (anil Kapoor) का कैरियर इंडस्ट्री में जम गया।

सौदागर में बड़े स्टार दिलीप कुमार (dileep kumar)  और राजकुमार (Raj Kumar) एक दूसरे के आमने सामने आए थे।

2001 में आई यादें और 2005 में रिलीज हुई किसना फिल्मों के पिटने के बाद उन्होंने प्रोडक्शन (production) में हाथ आजमाया।

एतराज, इकबाल जैसी फिल्में बनाईं। इकबाल (Iqbal) फिल्म को नेशनल अवार्ड (national award) भी मिला।

बाद में उन्होंने एक्टिंग और डायरेक्शन सिखाने के लिए whistle wood institute इंस्टिट्यूट की स्थापना की।

आपको बता दें कि उन्होंने रेहाना उर्फ मुक्ता से शादी की। उन्हीं के नाम पर अपनी कंपनी मुक्ता आर्ट्स (mukta arts) की शुरुआत की।

उनकी दो बेटियां मेघना और मुस्कान हैं। आपको बता दें कि उनको अभिनय का इतना शौक था कि अपनी हर फिल्म में वे चंद पल के लिए ही सही, दिखाई जरूर देते थे।

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