सुशील कुमार ने सोचा भी न होगा कि 38वां जन्मदिन जेल के सीखचों के पीछे मनेगा
1 min readसुशील कुमार (sushil kumar) सैकड़ों खिलाड़ियों के रोल मॉडल थे। लेकिन उन्होंने यह कभी नहीं सोचा होगा कि वह अपना 38वां जन्मदिन जेल के सीखचों के पीछे मनाएंगे।
वक्त इसी को कहते हैं। कल तक साउथ वेस्ट दिल्ली (south west Delhi) के पास नजफगढ़ का इलाका सुशील कुमार के नाम से मशहूर था।
उन्होंने वीरेंद्र सहवाग के बाद यहां से अपना नाम बनाया था। आज यहां सुशील कुमार के चर्चे उनके खेल को लेकर नहीं, बल्कि हत्यारोपी के तौर पर हो रही है।
निश्चित रूप से सुशील कुमार (sushil kumar) ने इस बुरे वक्त के बारे में कभी नहीं सोचा होगा। लेकिन जिंदगी ने उन्हें उस मोड़ पर खड़ा कर दिया है, जहां से वे हर किसी को खलनायक नजर आ रहे हैं।
आपको बता दें कि सुशील कुमार का जन्म 26 मई, 1983 को नजफगढ़ के दापरोला गांव में हुआ था। तीन भाईयों में वे सबसे बड़े थे।
उनके पिता दीवान सिंह एमटीएनएल (MTNL) में एक साधारण नौकरी में थे और मां कमला देवी गृहिणी।
सुशील कुमार (sushil kumar) को बचपन से ही कुश्ती का शौक था। वे बचपन से ही ओलंपिक मेडल जीतने का ख्वाब देखते थे। घरवालों को भी उनसे बड़ी उम्मीदें थी।
आलम यह था कि दीवान सिंह गांव से हर रोज साइकिल पर चार किलो दूध तीस किलोमीटर दूर छत्रसाल स्टेडियम में हास्टल में रह रहे सुशील को पहुंचाते थे।
सुशील कुमार ने यह सपना पूरा भी किया। उन्होंने बीजिंग ओलिम्पिक (Beijing Olympics) में 56 साल बाद भारत के लिए कुश्ती कांस्य पदक (bronze medal) जीता।
इसके बाद उन्होंने लंदन ओलंपिक (London Olympics) में रजत (silver medal) पदक जीता। कुश्ती में ओलंपिक के दो व्यक्तिगत पदक अपने नाम किए करने वाले वे अकेले भारतीय बने।
कुश्ती की वर्ल्ड चैंपियनशिप का गोल्ड भी सुशील कुमार ने अपने नाम किया। उन्हें उल्लेखनीय उपलब्धियों के लिए पद्मश्री, अर्जुन पुरस्कार, राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार मिले, लेकिन अब यह सारी उपलब्धियां पीछे हैं।
अब पहलवान सागर (Sagar) की हत्या के जुर्म में वह पुलिस गिरफ्त में है। पुलिस से बचते हुए वे एक से दूसरे राज्य भागते फिरे।
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और अब उनकी रेलवे की नौकरी भी जा चुकी है। जेल के अंदर सुशील कुमार के जहन में भी आ रहा होगा-ये कैसा जन्मदिन?