इस टीचर ने गालियां खाईं, लेकिन हार नहीं मानी, जुनून से दुर्गम क्षेत्र के स्कूल की हालत बदली

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आज हम आपको धुन के पक्के एक teacher से मिलवाते हैं। इस अध्यापक ने अपने जुनून से एकल अध्यापक विद्यालय की सूरत बदल डाली।
यह अध्यापक हैं भास्कर जोशी। अल्मोड़ा जिले से 50 किलोमीटर दूर टैक्सी से नैनी पडाव, जो कि आखिरी संपर्क मार्ग है, पहुंचने के बाद छह किलोमीटर की दुर्गम चढ़ाई चढ़नी पडती है। प्राथमिक विद्यालय बैजलाइसके बाद जटेश्वर नदी आती है, जिस पर अभी पुल नहीं बना है, इसे पार करने के बाद आता है राजकीय प्राथमिक विद्यालय बैजला। इस स्कूल में आज से छह साल पहले तैनात हुए थे सहायक अध्यापक (assistant teacher) भास्कर जोशी।
वह स्कूल की हालत देख अवाक थे। उस वक्त स्कूल में केवल 10 छात्र पंजीकृत थे और वह भी स्कूल नहीं आते थे। मां बाप उन्हें बकरियां चराने भेज देते थे। स्कूल भवन जर्जर था और उसमें कोई भी भौतिक सुविधा नहीं थी। सबसे बडी दिक्कत यह थी कि अगर मां बाप को कोई बच्चों को स्कूल भेजने को कहता तो वह आंचलिक भाषा में गालियां दिया करते थे।
ऐसे बच्चों कों स्कूल तक
लाना, शिक्षा के साधन विकसित करना बडी बात थी। बच्चों की संख्या में करीब तिगुनी बढ़ोतरी तो कोई सोच भी नहीं सकता था।
इस मुश्किल काम को स्कूल में 2013 में नियुक्त हुए इन सहायक अध्यापक (assistant teacher) भास्कर जोशी ने  मुमकिन कर दिखाया। आज इस सरकारी स्कूल में 26 बच्चे पढ रहे हैं, जो शिक्षा स्तर में किसी भी पब्लिक स्कूल के बच्चों को मात देते हैं। कक्षा एक के बच्चे भी धाराप्रवाह अंग्रेजी और हिंदी में पढते हैं, बोलते हैं।
गणित की सभी मुख्य संक्रियाएं चुटकी बजाते ही हल कर देते हैं। वह कहानी लिखते हैं। हिंदी और अंग्रेजी की कहानी सुनकर लोकभाषा में उसका अनुवाद करते हैं।
चित्र देखकर कहानी बनाते हैं। उन पर रोल प्ले करते हैं। कामिक्स तैयार करते हैं। मास्क बनाते हैं। पपेट शो करते हैं। स्कूल की बगिया को उन्होंने ही महकाया है और मिड डे मील में उसी की सब्जियां वह उदरस्थ करते हैं।
पर्यावरण बचाने की पहली सीख उन्हें उनके teacher ने ही दी। अपने इन्हीं प्रयासों की वजह से भास्कर को इस साल केंद्र सरकार ने उन्हें राष्ट्रीय नवाचारी शिक्षक (national innovative teacher) के पुरस्कार से भी नवाजा।
लेकिन यह आसान नहीं था…
बकौल भास्कर-बच्चों के मां बाप देखते ही गाली देने लगते। उन्हें लगता था कि बच्चों को स्कूल भेज दिया तो जो दो पैसे वह कमा पा रहे हैं, वह भी नहीं मिलेंगे। ऐसे में उन्हें उन्हीं की भाषा में कन्विंस किया।
नए प्रयोगों पर पुस्तक भी हुई प्रकाशित
भास्कर को नवाचारी शिक्षक ही नहीं, इसके अलावा रचनात्मक शिक्षण सम्मान और उत्कृष्ट शिक्षक सम्मान भी हासिल हुआ है। अरविंदो सोसायटी उनके जीरो इन्वेस्टमेंट इनोवेशन यानी शून्य निवेश नवाचारों पर एक पुस्तक भी प्रकाशित कर चुकी है।
भाषा टूल यूज कर रहे, बच्चों की ऊर्जा का कर रहे इस्तेमाल
भास्कर स्कूल में चार भाषाओं में प्रार्थना सभा कराते हैं। हिंदी में
‘वह शक्ति हमें दो दया निधे’ प्रार्थना होती है तो अंग्रेजी में ‘पावर
आफ ब्लेसिंग’। संस्कृत में ‘या कुंदेंदु तुषार हार धवला’ के जरिये मां सरस्वती का प्रार्थना पाठ होता है तो वहीं पहाडी में भी प्रार्थना कराई जाती है। बच्चों को अंग्रेजी में पारंगत करने के लिए भास्कर भाषा टूल का प्रयोग करा रहे हैं। इसके लिए उन्होंने एक टूल फाइल भी तैयार की है, जिसमें तरह तरह के लेक्चर, राइम्स, राइडल्स रखे हैं।
अपने संसाधनों से स्कूल को स्मार्ट बनाया
भास्कर ने अपने संसाधनों से स्कूल को स्मार्ट बनाया। उसमें कंप्यूटर और प्रोजेक्टर लगाए। खुद ही पुस्तकालय बनवाया।
बच्चों की रचनात्मकता को बाहर लाने के लिए मेरी दीवार फीचर शुरू किया इसके जरिये दीवार को पेंटकर बच्चों को खेल खेल में गणित और अंग्रेजी के सूत्रों से अवगत कराया।
मासिक बाल पत्रिका बजेला जागरण शुरू कराईं तो बच्चों की ऊर्जा को सही दिशा में लगाते हुए उनकी मदद से स्कूल में बाल विज्ञान उद्यान तैयार किया।
केवल दो ही विकल्प थे लड़ो या उड़ो, मैनें लड़ाई चुनी
बकौल भास्कर जब वह सारी दुर्गम स्थितियों से लडकर स्कूल पहुंचे तो वहां की हालत देख भौचक्के रह गए।
उनके सामने दो ही विकल्प थे-लड़ो या उड़ो। भास्कर के मुताबिक उन्होंने लड़ने की ठान ली। उनके मुताबिक वह बच्चों को केवल शिक्षा देने ही नहीं, बल्कि बेहतर शिक्षा देने वहां पहुंचे थे।
बच्चों में भी इतनी जागरूकता पैदा की कि अगर वह किसी को धूम्रपान करते देखते हैं तो नशे के खिलाफ नारे लगाते हैं। लोग शर्म से धूम्रपान छोड़ने को विवश हो जाते हैं।
स्कूल के बाद भी खत्म नहीं होता शिक्षण
भास्कर स्कूल के बाद भी बच्चों को पढाते हैं, ताकि बच्चों को किसी विषय में दिक्कत आ रही हो तो उसे दूर किया जा सके।
हरियाणा के एक एनजीओ ने गांव की एक शिक्षित बेरोजगार युवती को डेढ हजार रूपये में रखा है ताकि बच्चों को फायदा मिल सके। साथ ही उस युवती को भी रोजगार मिला है।
परिवार सेना में, लेकिन भास्कर ने चुनी अपनी अलग राह
मूल रूप से सोमेश्वर अल्मोडा के दूरस्थ क्षेत्र उडेरी के रहने वाले करीब 30 वर्षीय भास्कर की कक्षा 12वीं तक की शिक्षा केंद्रीय विद्यालयों में हुई।
इसके बाद उन्होंने पीजी काॅलेज हल्द्वानी से रसायन विज्ञान में एमएससी की डिग्री हासिल की। बच्चों को पढाने का, उनके अध्यापन का शौक जोर मार रहा था।
उनके पिता नंदकिशोर जोशी और बडे भाई हेमंत कुमार जोशी दोनों सेना में थे, लेकिन भास्कर ने उनसे अलग अपनी राह चुनी। आज अपनी इस अलहदा सी राह पर चलकर भास्कर जोशी बहुत खुश हैं।

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