Uttarakhand : रिवर्स माइग्रेशन कर कफोला ने मेहनत से चमकाई किस्मत
1 min read October 30, 2020 Khaskhabar
uttarakhand में रिवर्स माइग्रेशन की एक सफल कहानी है नरेंद्र कफोला की। उत्तराखंड के नरेंद्र कफोला ने अपने भाई महेंद्र कफोला संग मिलकर गांव में बंजर पड़ी जमीन पर जैविक फसल लहलहा दी।
उत्तराखंड (uttarakhand) के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित नगरासू गांव के नरेंद्र कफोला ग्रेजुएशन के बाद 17 साल पहले दिल्ली गए थे। वहां उन्होंने मैकेनिकल से जुड़ी कई नौकरी एक के बाद एक बल्ली, लेकिन सुकून नहीं मिला।
ऐसे में 2018 में उन्होंने गांव लौटने का फैसला कर लिया। नरेंद्र कफोला के पास अपनी पैतृक जमीन थी, जो बंजर पड़ी थी। उन्होंने छोटे भाई महेंद्र के साथ जमीन को उपजाऊ बनाने में पसीना बहाया और सब्जी उत्पादन की शुरुआत कर दिया।
आज वह अपनी 25 नाली जमीन पर हिमसोना टमाटर, बैंगन, कद्दू, भिंडी, शिमला मिर्च, लौकी, खीरा, मिर्च, अदरक, हल्दी, धनिया आदि उगा रहे हैं।
दोनों भाइयों ने पहले चरण में पांच नाली जमीन से काम शुरू किया। उन्होंने पावर वीडर से बंजर खेतों की खुदाई करके उन्हें खेती करने लायक बनाया।
जैविक विधि से मेंड़ बनाकर सब्जी उत्पादन शुरू किया। कड़ी मेहनत का बेहतर फल जल्दी ही सामने आ गया। उनकी जमीन पर कंटीली झाड़ियों की जगह हरियाली बिखरी दिखाई देने लगी।
नरेंद्र कफोला के मुताबिक उनकी पहली कमाई करीब डेढ़ लाख थी। आज वह सालाना करीब पौने दो लाख की बचत कर पा रहे हैं। वह बताते हैं कि वह इंटीग्रेटेड फार्मिंग कर रहे हैं, जो लाभदायक है।
दरअसल, इस तरह की इंटीग्रेटेड फार्मिंग के तहत केवल सब्जी और मसाला उत्पादन तक ही नरेंद्र और महेंद्र कफोला सीमित नहीं हैं। उन दोनों ने फलों के भी 300 पौधे रोपे हैं। इन फलों में आम, संतरा, नींबू, इलायची, अखरोट, अमरूद, आडू आदि शामिल हैं।
कफोला बंधु अब 50 नाली जमीन पर सब्जी उत्पादन के साथ ही दुग्ध डेयरी, फूलोत्पादन, मत्स्य पालन, मौन पालन शुरू कर रहे हैं।
उनका कहना है कि इंटीग्रेटेड फार्मिंग से फसलों की लागत कम आती है और मुनाफा ज्यादा होता है। उनकी देखा-देखी कई युवा रोजगार की इस राह पर चल पड़े हैं।