मोती की खेती से किस्मत चमका रहे विजेंद्र

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बिजनौर जिले में स्थित धामपुर तहसील के गांव चक के किसान विजेंद्र चौहान अन्य किसानों के लिए प्रेरणा बने हैं। वह तालाब में  मोती की खेती से  लाखों कमा रहे हैं।

इक्वेरियम  का बिजनेस करने वाले  विजेंद्र को इंटरनेट के जरिए इस खेती का पता चला। इसके बाद उन्होंने नागपुर जाकर पर्ल कल्चर की ट्रेनिंग ली और चार साल पहले गांव में ही चार तालाब खुदवा दिए।

विजेंद्र के अनुसार इनमें तीन 60×40, जबकि एक 60×50 मीटर का है। एक तालाब में 5000 से लेकर 7000 तक सीप डाले जाते हैं। इनका माॅरटैलिटी रेट 30 फीसदी के आस पास है। 70 प्रतिशत के करीब माल मिल जाता है।

एक सीप में दो माती होते हैं। इस तरह 5000 सीप से 10 हजार के करीब मोती प्राप्त हो जाते हैं। एक मोती न्यूनतम सौ से डेढ़ सौ रूपये का बिकता है।

माॅटैलिटी रेट को ध्यान में रखा जाए तो एक तालाब से करीब साढ़े पांच लाख से अधिक की कमाई हो जाती है। विजेंद्र के ज्यादातर मोती की सप्लाई हैदराबाद होती है।

सीप से मोती तैयार होने में न्यूनतम 10 महीने का समय लगता है। स्ट्र्क्चर सेटअप में करीब 10-12 हजार रूपये खर्च होते हैं। मामूली सी शल्य क्रिया चीरकर के जरिये इसके भीतर चार से छह मिमी व्यास वाले साधारण या

डिजाइनर बीड जैसे शंकर, गणेश, बुद्ध या किसी पुष्प की आकृति डाली जाती है। इसके बाद सीप को पूरी तरह बंद कर दिया जाता है। इन सीपों को नायलाॅन के बैग में 10 दिन तक एंटी बायोटिक और प्राकृतिक चारे मसलन काई पर रखा जाता है। हर रोज इनकी जांच की जाती है।

मृत सीपों को हटा लिया जाता है। बाकी सीपों को नायलाॅन बैगों में रखकर बांस या बोतल के सहारे लटका दिया जाता है।

कुछ दिन में सीप से निकलने वाला पदार्थ कैल्शियम कार्बोनेट आकृति के चारों ओर जमने लगता है और अंत में मोती
बन जाता है। करीब 10 माह बाद सीप को चीरकर मोती को निकाल लिया जाता है।

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