घाट के लोगों का दर्द कौन सुनेगा? सड़क चौड़ीकरण के लिए तीन माह से सड़क पर
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आपदाग्रस्त चमोली जिले के घाट (ghat) ब्लॉक मुख्यालय पर पिछले ढाई महीने से भी ज्यादा समय से एक आंदोलन चल रहा है। बात केवल सड़क चौड़ीकरण की है।
लेकिन सरकार घाट (ghat) के इन लोगों का दर्द समझने को तैयार नहीं। आपको बता दें कि बड़ी संख्या में लोग शांतिपूर्वक जुलूस निकालकर राज्य सरकार का ध्यान आकर्षण करने की कोशिश भी कर रहे हैं।
मुख्य मांग पर आते हैं। यह है नंदप्रयाग-घाट (nandprayag-ghat) के बीच की लगभग साठ साल पहले बनी 18-19 किमी लम्बी सड़क (road) को चौड़ा करना।
क्षेत्र वासी और सामाजिक कार्यकर्ता ही नहीं, बल्कि इस आंदोलन की खासियत यह है कि इसमें हर रोज छात्र छात्राएं भी शामिल हो रहे हैं।
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इंकलाब-जिंदाबाद का नारा बुलंद करते हुए ये छात्र छात्राएं इस आंदोलन को दूसरे आंदोलनों से अलग कर रहे हैं।
लोग स्थानीय नेताओं के माध्यम से अपनी बात आगे तक भी पहुंचा चुके हैं। लेकिन अभी उनकी बात सुनी नहीं जा रही।
ये वही उत्तराखंड है, जहां मातृशक्ति की जिजीविषा के आधार पर बड़े बड़े आंदोलन खड़े हुए। उत्तराखंड राज्य (uttarakhand state) आंदोलन भी एक ऐसा ही आंदोलन रहा।
स्थानीय लोगों (local people) को उम्मीद थी कि जब अपना राज्य और अपनी सरकार होगी तो उन लोगों की छोटी से छोटी बात भी सुनी जाएगी।
उनके मुद्दों की पैरवी होगी और उन्हें अपनी मांगों (demands) के लिए लंबे आंदोलनों की जरूरत नहीं पड़ेगी लेकिन ऐसा हो नहीं सका।
कम से कम घाट (ghat) आंदोलन को देखकर तो यही माना जा सकता है कि सत्ता में बैठे लोग जन सुविधाओं के प्रति संवेदनशील नहीं हैं।
यदि ऐसा होता तो करीब तीन माह से लगातार लोगों को अपनी बात मनवाने के लिए सड़क पर न उतरना पड़ता।
यदि उनकी मांग को सुन लिया जाता तो लोगों के भीतर अपनी सरकार में अपनी बात सुने जाने का जज्बा जागता। काश कि सरकार संवेदनशीलता दिखाए और घाट के लोगों की दिक्कत सुने।