‘जर्मनी की लड़ाई और पांवली की चढ़ाई’ उत्तराखंड के त्रियुगीनारायण में क्यों मशहूर है ये कहावत, जानिए
1 min readउत्तराखंड के त्रियुगीनारायण (triyuginarayan) में एक स्थानीय कहावत है। ‘जर्मनी की लड़ाई और पांवली की चढ़ाई’। इसमें इतिहास का एक तथ्य छिपा है।
इस तथ्य के बारे में पत्रकार मनमीत आपको बता रहे हैं-
त्रियुगीनारायण (triyuginarayan) में कहीं जाने वाली इस कहावत के तार कहीं गहरे दबे हैं। बात फ्रांस से शुरू करते हैं।
फ्रांस के रिंचेबर्ग में खुदाई के दौरान दो नर कंकाल मिले थे। बाद में पता चला कि ये शव लगभग 100 साल पहले के हैं।
और ये दफन लोग भारत के गढ़वाल से है। जो गढ़वाल राइफल के योद्धा थे। फिर शोध शुरू हुआ कि अगर उस स्थान पर और भी सैकड़ों गढ़वाली योद्धाओं के शव मिल सकते हैं।
रिेंचेबर्ग ही नहीं, बल्कि फेस्टूवल्ट और न्यू चेपल्स में भी खुदाई की जाये तो दोनों मोर्चों पर गढ़वाली योद्धाओं के शव मिल सकते हैं।
प्रख्यात साहित्यकार एवं घुमक्कड़ राहुल सांकृत्यायन के साथ ही इतिहासकार डा. शिव प्रसाद डबराल की किताबों में इन बातों का स्पष्ट उल्लेख मिलता है।
इन किताबों में उन समय के फ्रांस के विभिन्न मोर्चों पर लड़े योद्धाओं की जीवनी के साथ कई महत्वपूर्ण तथ्य भी शामिल है।
प्रसिद्ध गढ़वाली कहावत, ‘जर्मनी की लड़ाई और पांवली की चढ़ाई’ भी इस मोर्चे से निकला हुआ है। क्योंकि ये लड़ाई आज तक की सबसे जानलेवा और कठिन लड़ाई मानी गयी।
इस युद्ध में सबसे ज्यादा जहाँ के लोग शहीद हुए वो घनशाली बेल्ट के लोग थे। इसलिए जो बच कर वापस लौटे, वो इस युद्ध की तुलना, पांवली की चढ़ाई से करते रहे। जिससे, ये कहावत जन्मी।
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गढ़वाल के इतिहास पर विशेष शोध करने वाले महिपाल सिंह नेगी बताते हैं कि, असल में, रिचें बर्ग का मोर्चा फ्रांस और जर्मनी के बार्डर से लगता हुआ है।
जर्मनी ने वहां पर सत्तर से ज्यादा खंदक (बड़ी नालियां) खोदी हुई थी। फ्रांस की सेना जब इन खंदकों को पार नहीं कर पाई तो, उसने इंग्लैंड के सेन्य अधिकारियों से यह कहकर मदद मांगी कि, उनकी सेना इन खंदकों को पार करने में अक्षम है।
ऐसे में, दुनिया की सबसे बेहतरीन इन्फेंट्री ही रिंचेबर्ग और न्यू चेपल्स का मोर्चा पार कर सकती है। इंग्लैंड, क्योंकि फ्रांस के साथ मित्र राष्ट्र क्लब में था। जो मिलकर जर्मनी और इनके साथ के देशों के खिलाफ लड़ रहे थे।
पत्र मिलने के बाद गढ़वाल रेजीमेंट की 39 बटालियन को 21 सितंबर, 1914 को इस मोर्चे के लिये पानी के जहाज से रवाना कर दिया गया।
यह बटालियन 13 अक्टूबर को इन दोनों मोर्चों पर पहुंची। फ्रांस की सेना ने गढ़वाल रेजीमेंट के सिपाहियों को बिना कोई भौगोलिक परिचय दिये सीधे मोर्चों पर झोंक दिया।
जहां अपने अदम्य साहस का परिचय देते हुये गढ़वाली खंदकों में घुस गये। ये हमला इतनी तेज गति से हुआ कि खंदकों में उस समय पेट्रोलिंग के लिये पचास से ज्यादा जर्मन सैनिक आये हुये थे।
गढ़वाली सैनिकों ने उन्हें बंधक बना लिया। इसका उल्लेख फ्रांस की सैन्य किताबों में भी है। पचास सैनिकों के बंधक बन जाने की खबर अगर उस समय जर्मनी के चांसलर को दी जाती तो जर्मन रेजीमेंट को यंत्रणा शिविर में भेज दिया जाता।
लिहाजा, जर्मनी के अधिकारियेां ने हुक्म दिया कि इन खंदकों में इतने हैंड ग्रेनेड फैेंके जाएं की सभी मर जायें।
गढ़वाल का इतिहास (भाग-दो) में डा. शिव प्रसाद डबराल लिखते हैं कि, हैंड ग्रेनेड फेंकने से गीली मिट्टी में बनाये गये खंदक ढह गये और उसमें जर्मन सैनिकों के साथ ही कई गढ़वाली भी दफन हो गये।
ऐसा ही रिंचेबर्ग और फेस्टूवल्ट में भी हुआ। गढ़वाल रेजीमेंट की इस बटालियन (batalion) के बाद ही एक अन्य बटालियन गढ़वाली सैनिकों (garhwali soldiers) की मदद के लिये रवाना की गई थी।
जिसमें पेशावर कांड (Peshawar kand) के नायक चंद्र सिंह गढ़वाली (Chandra Singh garhwali) भी थे। चंद्रसिंह गढ़वाली की जो आत्मकथा राहुल सांकृत्यायन (Rahul sankrityayan) ने लिखी है। उसमें इस मोर्चे का उल्लेख है।
वहीं डा. शिव प्रसाद डबराल (shiv Prasad dabral) के ऐतिहासिक शोध दस्तावेजों (research documents) में भी इन मोर्चो का उल्लेख है। 39 गढ़वाल राइफल से सैकड़ों सिपाही इस मोर्चे से वापस नही आ पाए। वो सैन्य रिकॉर्ड आज तक missing हैं।
इतना साहस देख दंग रह गई दुनिया
फ्रांस के मोर्चों पर गढ़वाल रेजीमेंट के पहुंचने के बाद युद्ध चरम पर पहुंच गया। जो जर्मनी लगातार आगे बढ़ रहा था, वो अब पीछे हटने लगा।
न्यू चेपल्स के मोर्चे में ही टिहरी (Tehri) गढ़वाल के गबर सिंह (gabar Singh) को इंग्लैंड का सर्वोच्य वीरता पुरस्कार विक्टोरिया क्रॉस पुरस्कार मरणोपरांत प्राप्त हुआ।
जबकि नायक दरबान सिंह (darvan Singh) को भी विक्टोरिया क्रास (Victoria cross) से सम्मानित किया गया। इसके तुरंत बाद इंग्लैंड (England) के राजा ड्यूक (king Duke) भारत आये और गढ़वाल रेजीमेंट को ‘रॉयल गढ़वाल राइफल’ से नवाजा गया।
लेकिन इस वीरता (bravery) के बाद गढ़वाल रेजीमेंट को भारत भेजने के बजाय मेसोपटामिया (Mesopotamia) के मोर्चों में भेजा। जहां फिर से गढ़वालियों ने युद्ध जीता।
क्या था मामला
एक साल पूर्व फ्रांस के रिचेबर्ग में खुदाई के दौरान कुछ शव (dead bodies) मिले थे। जो जांच करने पर गढ़वाल रेजीमेंट के निकले।
उनकी तस्दीक शवों के साथ मिले बैज से हुई। जिसमें 39 गढ़वाल राइफल्स का नाम और निशान था। इन शवों के साथ ही जर्मन सैनिक और ब्रिटिश सैनिकों भी कुछ शव मिले थे।
इसकी जानकारी फ्रांस (France) सरकार ने गढ़वाल रेजीमेंट के अधिकारियों को दी। उसके बाद गढवाल रेजीेमेंट (garhwal regiment) से अधिकारियों की एक टीम फ्रांस रवाना हो गई थी।
त्रियुगीनारायण (triyuginarayan) आज कुछ अलग हट के पर्यटन करने वालों की पसंद है। टिहरी के घुत्तू से होते हुए (triyuginarayan) का ट्रैक बेहद कठिन है। कुछ समय पहले एक शाही शादी की वजह से भी (triyuginarayan) चर्चा में रहा। पर्यावरण के नजरिए से भी यह बेहद संवेदनशील है।